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    प्रेम ही सेवा है - ओशो

    7:21:00 am 0

      प्रिय सोहन,                तेरा पत्र मिला है। अंगुली में क्या चोट मार ली है? दीखता है कि शरीर को कोई ध्य न नहीं रखती है। और, मन के अशांत ह...

    प्रेम के दिए - ओशो

    7:21:00 am 0

      प्यारी सोहन,       प्रेम।                 कल रात्रि जब सारे नगर में दिए ही दिए जले हुए थे तो मैं सोच रहा था कि मेरी सोहन ने भी दिए जलाए हो...

    प्रेम-अनंतता है - ओशो

    7:22:00 am 0

      मेरे प्रिय।       प्रेम।                    तुम्हारा पत्र पाकर अत्यंत आनंदित हूं। ऐसा हो भी कैसे सकता है कि प्रेम की किरण आवे और साथ में आ...

    छोड़ो स्वयं को और मिटो - ओशो

    7:20:00 am 0

    मेरे प्रिय,       प्रेम।                 प्रेम भी आग है। ठंडी आग! फिर भी उसमें जलना तो पड़ता ही है। लेकिन, वह निखारता भी है। निखारने के लिए ...

    जीवन-संगीत - ओशो

    7:20:00 am 0

    प्यारी संगीता,      प्रेम।                 आकाश में चांद उगे तब उसे एक टक निहारना-शेष सब भूल कर। स्वयं को भी भूलकर। तव ही तू जानेगी उस संगीत...

    जीवन-श्रृंखला की समझ - ओशो

    6:35:00 am 0

       प्रिय, हसुमति,       प्रेम।                 असंभव भी असंभव नहीं है। बस संकल्प चाहिए। और संभव भी असंभव हो जाता है। बस, संकल्पहीनता चाहिए। ...

    योग साधना है सम्यक धर्म - ओशो

    5:59:00 am 0

    प्रिय वहिन,       प्रणाम।            आपका पत्र मिला है। मैं प्रतीक्षा में ही था। राजनगर की यात्रा आनंदपूर्ण रही है। धर्म साधना योग की दिशा क...

    अतः ज्योति - ओशो

    5:59:00 am 0

      प्रिय वहिन,                 प्रभू की अनुकंपा है कि आप भीतर की ज्योति के दर्शन में लगी हैं। वह ज्योति निश्चि त ही भीतर है जिसके दर्शन से जी...

    साक्षी की आंखें - ओशो

    5:59:00 am 0

    सुश्री जया जी,       प्रणाम।                 मैं वाहर था : मेरे पीछे घूमता हुआ आपका पत्र मुझे यात्रा में मिला। उसे पा कर आनंद हुआ है। जीवन म...