जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? - ओशो
जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? - ओशो विचारशील व्यक्ति शांत कैसे हो सकता है? जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? ...
जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? - ओशो विचारशील व्यक्ति शांत कैसे हो सकता है? जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? ...
भारत धार्मिक नहीं हो सका, क्योंकि भारत ने परलौक की धारणा विकसित की - ओशो पहला सूत्र: भारत धार्मिक नहीं हो सका, क्योंकि भारत ने धर्म की एक...
जिसकी अनुदारता तलवार में नहीं निकल सकती, उसकी तर्कों में निकलती है - ओशो ईसाइयों ने जिंदा आदमी जलाए--मगर इस आशा में कि यह धर्म का कार्य ह...
स्वम को धार्मिक मान लेने और वास्तव में धार्मिक होने में फर्क है - ओशो जब तक कोई जाति, कोई समाज, कोई देश, कोई मनुष्य धार्मिक नहीं हो जाता, त...
कर्तव्य शब्द ही गंदा है - ओशो कर्तव्य शब्द ही गंदा है। प्रेम से जीना समझ में आता है, कर्तव्य से जीना समझ में नहीं आता। यह तुम्हारी पत्नी ...
हम कहने को धार्मिक हैं और हम जैसा अधार्मिक आचरण आज पृथ्वी पर कहीं भी खोजने से नहीं मिल सकता - ओशो आदमी ने अपने को धोखा देने के लिए हजार त...
ब्रह्मज्ञानी परहिंसा नहीं करता तो आत्महिंसा कैसे करेगा - ओशो अब विचार के कचरे से जो भरा है वह किन्हीं और तोतों को दोहरा रहा है। हो सकता ह...
मंदिर जाने से धर्म तक जाने का कोई भी संबंध नहीं है - ओशो एक आदमी रोज सुबह मंदिर हो आता है और वह सोचता है कि मैं धर्म के भीतर जाकर वापस लौट...
तोतों के कारण कर्म और आचरण संदेह से भरा हुआ है - ओशो जब सिकंदर भारत से वापस लौट रहा था तो उसे खबर मिली कि एक ब्राह्मण के पास ऋग्वेद की मू...
भगवान का स्मरण हो सकता है, भगवान का नाम स्मरण नहीं हो सकता - ओशो एक आदमी रोज सुबह बैठ कर भगवान का नाम ले लेता है। निश्चित ही, बहुत जल्दी ...
किसी और के पीछे चलना आत्महत्या है - ओशो कर्म और आचरण के संबंध में संदेह कब उपस्थित होता है? जब कर्म और आचरण उधार होता है तभी संदेह उपस्थित...
कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता - ओशो जो आदमी भी किसी का अनुयायी बनता है, वह आदमी पहली तो बात है खतरनाक है, डेंजरस है। क्य...