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    अतः ज्योति - ओशो

     

    Hence-Jyoti-Osho

    प्रिय वहिन, 

                प्रभू की अनुकंपा है कि आप भीतर की ज्योति के दर्शन में लगी हैं। वह ज्योति निश्चि त ही भीतर है जिसके दर्शन से जीवन का समस्त तिमिर मिट जाता है। एक एक चर ण भीतर चलता है और पर्त पर्त अंधेरा कटता जाता है और फिर आता है आलोक को लोक और सव कुछ नया हो जाता है। इस दर्शन से वंधन गिर जाते हैं और ज्ञात होता है वे वस्तुतः कभी थे ही हनीं-नित्य मुक्त को मुक्ति मिल जाती है। मैं आपकी प्रगति से प्रसन्न हूं। आपका पत्र मिले तो देर हुई पर बहुत व्यस्थ था इसलि ए उत्तर में विलंब हो गया है। पर स्मरण आपका मुझे बना रहता है-उन सबका वना रहता है जो प्रकाश की ओर उन्मुख हैं और उन सबके लिए मेरी अंतरात्मा से सदभ वनाए बहती रहती हैं। चलते चलना है-बहुत बार मार्ग निराश करता है पर अंततः जिन्हें प्यास है उन्हें पानी भी मिल ही जाता है। वस्तुत: प्यास के पूर्व ही पानी की स त्ता है। सबको मेरे विनम्र प्रणाम। 



    रजनीश के प्रणाम
    २१-११-१९६२ (प्रभात) प्रति : सुश्री जया शाह, बंबई

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