• Recent

    संकल्प और समर्पणरत साधना - ओशो

     

    Resolve-and-Dedicated-Silence-Osho

    प्रिय सोहनवाई, स्नेह, 

            बहुत बहुत स्नेह । मैं बाहर से लौटा हूं तो आपका पत्र मिला है। उसके शब्दों से आपके हृदय की पूरी आकुलता मुझ तक संवादित हो गयी है। जो आकांक्षा आपके अंतःकरण को आंदोलित कर रही है, और जो प्यास आपकी आंखों में आंसू बन जाती है, उसे मैं भली भांति जानता हूं। वह कभी मुझ में भी थी, और कभी मैं भी उससे पीड़ित हुआ हूं। मैं आपके हृदय को समझ सकता हूं क्योंकि प्रभु की तलाश में मैं भी उन्हीं रास्तों से निकला हूं जिनसे कि आपको निकलना है। और, उस आकुलता को मैंने भी अनुभव ि कया है, जो कि एक दिन प्रज्वलित अग्नि वन जाती है, ऐसी अग्नि जिसमें कि स्वयं को ही जल जाना होता है। पर वह जल जाना ही एक नये जीवन का जन्म भी है। बूं द मिटकर ही तो सागर हो पाती है।

            समाधि साधना के लिए सतत प्रयास करती रहें। ध्यान को गहरे से गहरा करना है। वही मार्ग है। उससे ही, और केवल उससे ही, जीवन सत्य तक पहुंचाना संभव हो पा ता है। और, जो संकल्प से और संपूर्ण समर्पण से साधना होता है, स्मरण रखें कि उसका सत् य तक पहुंचना अपरिहार्य है। वह शाश्वत नियम है। प्रभु की ओर उठाए कोई चरण कभी व्यर्थ नहीं जाते हैं। वहां सबको मेरा प्रणाम कहें। श्री माणिकलाल जी की नए वर्ष की शुभ कामनाएं मिल । हैं। परमात्मा उनके अंतस को ज्योतिमर्य करे, यही मेरी प्रार्थना है। 



    रजनीश के प्रणाम
    ११-११-१९६४ प्रति : सोहन वाफना, पूना

    कोई टिप्पणी नहीं