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    जो पूर्णता से प्यासा होगा उसकी प्रार्थना सुन ली जाती है - ओशो

    बिलकुल, बिना कोई स्पेस छोड़े वाक्य को इस तरह लिखा जा सकता है:  **The-prayers-of-one-who-is-thirsty-for-perfection-are-heard-Osho**


    जो पूर्णता से प्यासा होगा उसकी प्रार्थना सुन ली जाती है -  ओशो 

    इस जगत् के शाश्वत नियमों में से एक नियम है कि जो पूर्णता से प्यासा होगा उसकी प्रार्थना सुन ली जाती है। उसकी प्रार्थना पहुंच जाती है। उस दिन बुल्लेशाह ने ही हाथ नहीं रखा जगजीवन पर, बुल्लेशाह के माध्यम से परमात्मा का हाथ जगजीवन के सिर पर आ गया। टटोल तो रहा था, तलाश तो रहा था। बच्चे की ही तलाश थी— निर्बोध थी, अबोध थी। लेकिन प्रकृति से झलकें मिलनी शुरू हो गई थीं। कोई रहस्य आवेष्टित किए है सब तरफ से इसकी प्रतीति होने लगी थी, इसके आभास शुरू हो गए थे। आज जो अचेतन में जगी हुई बात थी, चेतन हो गई। जो भीतर पक रही थी, आज उभर आयी । जो कल तक कली थी, बुल्लेशाह के हाथ रखते ही फूल हो गई। रूपांतरण क्षण में हो गया। जगजीवन ने फिर कोई साधना इत्यादि नहीं की । बुल्लेशाह से इतनी ही प्रार्थना की कुछ प्रतीक दे जाएं। याद आएगी बहुत स्मरण होगा बहुत । कुछ और तो न था, बुल्लेशाह ने अपने हुक्के में से एक सूत का धागा खोल लिया—काला धागा; वह दाएं हाथ पर बांध दिया जगजीवन के । और गोविंदशाह ने भी अपने हुक्के में से एक धागा खोला—सफेद धागा, और वह भी दाएं हाथ पर बांध दिया। 

            जगजीवन को माननेवाले लोग जो सत्यनामी कहलाते हैं— थोड़े-से लोग हैं - वे अभी भी अपने दाएं हाथ पर काला और सफेद धागा बांधते हैं। मगर उसमें अब कुछ सार नहीं है। वह तो बुल्लेशाह ने बांधा था तो सार था। कुछ काले - सफेद धागे में रखा है क्या? कितने ही बांध लो, उनसे कुछ होनेवाला नहीं है। वह तो जगजीवन ने मांगा था, उसमें कुछ था । और बुल्लेशाह ने बांधा था, उसमें कुछ था। न तो तुम जगजीवन हो, न बांधनेवाला बुल्लेशाह है। बांधते रहो। इस तरह मुर्दा प्रतीक हाथ में रह जाते हैं। कुछ और नहीं था तो धागा ही बांध दिया। और कुछ पास था भी नहीं। हुक्का ही रखते थे बुल्लेशाह, और कुछ पास रखते भी नहीं थे। लेकिन बुल्लेशाह जैसा आदमी अगर हुक्के का धागा भी बांध दे तो रक्षाबंधन हो गया। उसके हाथ से छूकर साधारण धागा भी असाधारण हो जाता है । और प्रतीक भी था।

     -  ओशो 

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