पाप भी बंधन है, पुण्य भी बंधन है। शुभ भी बंधन है, अशुभ भी बंधन है- ओशो
पाप भी बंधन है, पुण्य भी बंधन है। शुभ भी बंधन है, अशुभ भी बंधन है- ओशो
पाप भी बंधन है, पुण्य भी बंधन है। शुभ भी बंधन है, अशुभ भी बंधन है। यह बुल्लेशाह की देशना थी। यह उनका मौलिक जीवन - मंत्र था | अच्छा तो बांध लेता है, जैसे बुरा बांधता है। नरक भी बांधता है, स्वर्ग भी बांधता है। इसलिए तुम बुरे से तो छूट ही जाना, अच्छे से भी छूट जाना। न तो बुरे के साथ तादात्म्य करना, न अच्छे के साथ तादात्म्य करना । तादात्म्य ही न करना । तुम तो साक्षी मानना अपने को कि मैं दोनों का द्र ष्टा हूं। लोहे की जंजीरें बांधती हैं, सोने की जंजीरें भी बांध लेती हैं। जिसको तुम पापी कहते हो वह भी कारागृह में है, जिसको तुम पुण्यात्मा कहते हो वह भी कारागृह में है। चौंकोगे तुम । चोरी तो बांधती ही है, दान भी बांध लेता है।
अगर दान में दान की अकड़ है कि मैंने दिया – अगर यह भाव है तो तुम बंध गए। जहां मैं है वहां बंधन है। अगर दान में यह अकड़ नहीं है कि मैंने दिया, परमात्मा का था, उसी ने दिया, उसी ने लिया, तुम बीच में आए ही नहीं; तो दान की तो बात ही छोड़ो, चोरी भी नहीं बंधती । अगर तुम अपने सारे कर्ता-भाव को परमात्मा पर छोड़ दो, फिर कुछ भी नहीं बांधता । फिर तुम नरक में भी रहो, तो मोक्ष में हो । कारागृह में भी स्वतंत्र हो । शरीर में भी जीवनमुक हो । लेकिन दोनों के साक्षी बनना । ऐसा सूक्ष्म संदेश था उसमें ।
- ओशो
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