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    लोग जीवन को सोचकर नहीं जी रहे हैं, सिर्फ अनुकरण कर रहे हैं अंधा- ओशो

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     लोग जीवन को सोचकर नहीं जी रहे हैं, सिर्फ अनुकरण कर रहे हैं अंधा- ओशो 

              और तुम सोचते हो तुम बड़े बुद्धिमान आदमी हो ? तुम बुद्ध हो। तुम बुद्धू बनाए गए हो। चीजें दोहरायी गई हैं और तुम्हारे मन में बिठा दी गई हैं। तुम सिर्फ संस्कारित कर दिए गए हो। जिंदगी पुनरुक्ति से चल रही है। और इसीलिए तुम्हारे चारों तरफ लोग जो मानते हैं वही तुम भी मान लेते हो । सब लोग धन की दौड़ में लगे हैं, तुम भी लग जाते हो। "अ" भी दौड़ रहा है, "ब" भी दौड़ रहा है, सभी दौड़ रहे हैं। सभी धन की दौड़ में दौड़ रहे हैं। सभी कहते हैं, धन मूल्यवान है। तुम भी दौड़े। सब दिल्ली जा रहे हैं, तुमने उठा लिया झंडा कि चलो दिल्ली; कि अब दिल्ली से पहले रुकना ही नहीं है। चारों तरफ एक हवा होती है। उस हवा में आदमी बहता है । लहरें उठती हैं, लहरों के साथ आदमी चले जाते हैं। 

              समझदार आदमी वही है जो अपने को इन लहरों से बचाए । नहीं तो तुम धक्के खाते रहे, कितने जन्मों तक खाते ही रहोगे। यहां परमात्मा को खोजनेवाले लोग तो बहुत कम हैं, न के बराबर हैं। उनका तुम्हें पता ही न चलेगा अगर तुम खोजने ही न निकलो । धन को खोजनेवाले तो सब जगह हैं। सभी वही कर रहे हैं। तुम्हारे पिता भी वही कर रहे हैं, तुम्हारे भाई भी वही कर रहे हैं, तुम्हारा परिवार भी वही कर रहा है, तुम्हारे पड़ौसी भी वही कर रहे हैं। सारी दुनिया धन खोज रही है । इतने लोग गलत थोड़े ही हो सकते हैं। इतने लोग खोज रहे हैं तो ठीक ही खोज रहे होंगे। इसलिए तुम्हारा मन हजार-हजार चीजों में उलझ जाता है। तुम ऐसी चीज खरीद लेते हो जिनकी तुम्हें जरूरत नहीं है। लेकिन पड़ोसियों ने खरीदी हैं, तुम कर भी क्या सकते हो ? जब पड़ोसी खरीदते हैं तो तुम्हें भी खरीदनी पड़ती हैं। तुम ऐसे कपड़े पहने हुए हो, जो तुम्हें न रुचते हैं न जंचते हैं, न सुखद हैं। 

              अब हिंदुस्तान जैसे देश में भी लोग टाई बांधे हुए हैं। यहां गर्मी से वैसे ही मरे जा रहे हो । टाई ठंडे मुल्क के लिए जरूरी है, उपयोगी है ताकि गले में कोई संध न रह जाए जरा भी। ठंडी हवा भीतर न जा सके। ठंडे मुल्कों में टाई बिल्कुल ठीक है लेकिन गर्म मुल्क...! तुम टाई बांधे हुए हो, गलफांस - अपने हाथ से ही फांसी लगाए बैठे हो । मगर बैठे हैं लोग ठंडे मुल्कों में लोग जूते और मोजे दिन-भर पहने रहते हैं, स्वाभाविक है। मगर तुम किसलिए पहने हुए हो? पसीने से तरबतर हो रहे हो मगर मोजे नहीं उतार सकते, जूते नहीं उतार सकते | उसके बिना साहबी चली जाती है। लोग जीवन को सोचकर नहीं जी रहे हैं, सिर्फ अनुकरण कर रहे हैं अंधा ।

    - ओशो 

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