हर नदी सागर की तरफ जा रही है, चाहे दिशा कोई भी हो- ओशो
हर नदी सागर की तरफ जा रही है, चाहे दिशा कोई भी हो- ओशो
तुम जब किसी स्त्री के प्रेम में पड़े हो या किसी पुरुष के प्रेम में पड़े हो तब भी तुम परमात्मा की ही तलाश कर रहे हो, हालांकि तुम्हारी तलाश अंधी है । और चूंकि परमात्मा को तुम इस अंधे ढंग से तलाश रहे हो, तुम असफल होओगे। क्या तुम्हें पता है कि सभी प्रेम असफल हो जाते हैं इस पृथ्वी पर ? और सभी प्रेम पीछे मुंह में कड़वा स्वाद छोड़ जाते हैं। क्यों? कारण क्या है? कारण है अपेक्षा । जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो तो तुम साधारण स्त्री नहीं मानते हो उसे; मान ही नहीं सकते। तुम मानते हो अद्वितीय, दिव्य प्रतिमा। और फिर धीरे-धीरे तुम पाते हो, मिट्टी की है। ऐसी मिट्टी की जैसी और स्त्रियां हैं। जरा भेद नहीं है।
जब कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है तो परमात्मा के ही प्रेम में पड़ती है। वह पुरुष में परमात्मा को खोजना शुरू करती है और नहीं पाती है। तब विषाद मन को पकड़ लेता है । लगता है जैसे धोखा दिया गया। तब धोखे की प्रतीति में क्रोध उठता है । पति-पत्नी अगर सतत कलह करते रहते हैं तो उसका कारण क्या है? जो कारण वे बताते हैं उनमें मत उलझना। उन कारणों का कोई मूल्य नहीं है। पति कहे कि आज रोटी में नमक कम था इसलिए झगड़ा हो गया, कि पत्नी कहे कि पति आज रात देर से लौटा घर इसलिए झगड़ा हो गया। ये तो बहाने हैं झगड़े के । अगर पति घर में ही बैठा रहे तो भी झगड़ा हो जाएगा कि तुम यहीं क्यों बैठे हो ?
मुल्ला नसरुद्दीन शाह की पत्नी उससे झगड़ती रहती कि तुम हमेशा बकवास क्यों करते हो? मैंने उससे एक दिन कहा कि तू बकवास बंद ही कर दे, अब यही झगड़े का कारण है। तो उसने कहा, अच्छा आज मैं कसम खाकर जाता हूं। वह जाकर बिल्कुल चुप बैठ गया। घड़ी-भर बाद पत्नी बोली कि तुम चुप क्यों बैठे हो ? बोलते क्यों नहीं ? क्या लकवा मार गया है ? बोले तो मौत, न बोले तो मौत। बोलो तो फंसो, न बोलो तो फंसो । अगर पति दिन-भर घर में रहे तो पत्नी पूछती है कि बात क्या है? तुम यहीं-यहीं क्यों चक्कर काट रहे हो ? काम-धाम नहीं करना है? अगर काम-धाम के लिए जाए तो पूछती है, तुम्हें काम ही धाम पड़ा है। तुम्हें मेरी कोई चिंता नहीं है ।
अगर गौर से देखोगे तो पति-पत्नी के झगड़े के भीतर में छोटी-छोटी बातें तो सिर्फ निमित्त हैं। असली झगड़ा कुछ और है। दोनों ने धोखा खाया है। दोनों ने सोचा था किसी दिव्य प्रेम का आविर्भाव हो रहा है और फिर पीछे पाया कि न कुछ दिव्य है न कुछ प्रेम है । सब क्षुद्र है । सब मिट्टी से भरा है। मुंह मिट्टी से भर गया है । सोचा था कुछ, हो गया कुछ है । लेकिन अगर तुम्हें समझ में आ जाए कि किस कारण यह हो रहा है तो बड़े फर्क पड़ जाएंगे। फिर झगड़े की कोई बात न रही। परमात्मा की तलाश चल रही है। प्रत्येक व्यक्ति परमात्मा को खोज रहा है, चाहे उसे पता हो और चाहे पता न हो। वे भी जो कहते हैं ईश्वर नहीं है, परमात्मा की खोज में लगे हैं । नास्तिक भी उसी तरफ चल रहा है। कोई बचने का उपाय ही नहीं है। हर नदी सागर की तरफ जा रही है ।
- ओशो
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