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    तुमसों मन लागो है मोरा -ओशो

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     तुमसों मन लागो है मोरा -ओशो 

    जो दूसरे कर रहे हैं वैसा ही तुम भी कर रहे हो, तो तुम शायद परमात्मा तक कभी नहीं पहुंच पाओगे। क्योंकि तुम्हारा मन इतना छितर जाएगा, इतना बिखर जाएगा खंड-खंडों में । और परमात्मा को पाने के लिए अखंड मन चाहिए। और परमात्मा मांग करता है कि पूरा मन मेरी तरफ हो तो ही तुम मुझे पाने के हकदार हो । वह उसकी शर्त है। उससे कम शर्त पर उसे कोई पाता नहीं । तुमसों मन लागो है मोरा ! लेकिन लग गया जगजीवन का मन । प्रकृति से रस जुड़ते - जुड़ते एक दिन बुल्लेशाह से रस जुड़ गया। जो प्रकृति से रस जोड़ेगा उसे आज नहीं कल सद्गुरु मिल जाएगा।तो मैं तुमसे कहता हूं, मंदिर जाओ न जाओ चलेगा; लेकिन कभी वृक्षों के पास जरूर बैठना; नदियों के पास जरूर बैठना; सागर में उठती हुई उत्ताल तरंगों को जरूर देखना; हिमाच्छादित शिखर हिमालय के जरूर दर्शन करना। फूलों से दोस्ती बनाओ। वृक्षों से बातें करो। हवाओं में नाचो । वर्षा से नाता जोड़ो - और तुम सद्गुरु को खोज लोगे। क्योंकि न तो वृक्ष झूठ बोलेंगे तुमसे, न नदियां झूठ बोलेंगी, न पक्षी झूठ बोलेंगे। इन्हें झूठ का कुछ पता नहीं है। 

              झूठ आदमी की ईजाद है। ये विज्ञापन भी नहीं करेंगे लेकिन उनकी मौजूदगी, उनकी शांति, उनका सन्नाटा, उनका उत्सव | यह चल रहा सतत उत्सव, यह प्रकृति का चौबीस घंटे चल रहा नृत्य – यह तुम्हें कितनी देर तक दूर रखेगा ? जल्दी ही तुम्हें रहस्य का अनुभव होगा, विस्मय जगेगा, आश्चर्य का भाव उठेगा। जल्दी ही तुम सद्गुरु को खोजने में समर्थ हो जाओगे | और ध्यान रखना, एक पुरानी इजिप्ती कहावत तुम्हें मैं दोहराऊं। इजिप्त के पुराने फकीरों ने कहा है कि जब शिष्य राजी होता है तो गुरु प्रकट होता है । ऐसे ही बुल्लेशाह जगजीवन के जीवन में प्रकट हुए। अचानक ! बांसुरी बजाता होगा, गाय चराता होगा । बुल्लेशाह का आना, इसे आग लेने भेजना, बुल्लेशाह का इसकी आंखों में आंख डालकर देखना, इसके सिर पर हाथ रखना, इसके हाथ में प्रेम की राखी बांध देना । जरूर इसकी प्यास इतनी प्रगाढ़ हो गई होगी कि सरोवर इसकी तरफ चला; कि सरोवर ने इसकी तलाश की।और फिर तो जगजीवन का मन पूरा का पूरा परमात्मा में लग गया। 

    -ओशो 




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