आदमी ने स्वं और परमात्मा के बीच एक दीवार खड़ी कर ली है - ओशो
आदमी ने स्वं और परमात्मा के बीच एक दीवार खड़ी कर ली है - ओशो
लंदन में कुछ वर्षो पहले बच्चों का एक सर्वे किया गया। दस लाख बच्चों ने एक अजीब बात कही कि उन्होंने गाय-बैल नहीं देखे हैं। लंदन में कहां गाय-बैल! मगर अभागा है वह आदमी जिसने गाय की आंखों में नहीं झांका। क्योंकि आंखों में अब भी एक शाश्वतता है, एक सरलता है, एक गहराई है - जो आदमी की आंखों ने खो दी है! आदमी की आंखों में वैसी गहराई पानी हो तो कोई बुद्ध मिले तब ; मगर गाय की आंख में तो है ही । अभागे हैं वे बच्चे जिन्होंने गाय नहीं देखी। अभागे हैं वे बच्चे जिन्होंने खेत नहीं देखे । लंदन के बच्चों ने, लाखों बच्चों ने बताया कि उन्होंने अभी तक खेत नहीं देखे । और जिसने खेत नहीं देखा उसे परमात्मा की याद आएगी? जिसने बढ़ती हुई फसलें नहीं देखीं, जिसने बढ़ती हुई फसलों का चमत्कार नहीं देखा। जहां जीवन बढ़ता है, फलता है, फूलता है, वहीं तो रहस्य का पदार्पण होता है । मनुष्य नास्तिक हुआ है, नास्तिकता के कारण नहीं; मनुष्य नास्तिक हुआ है, आदमी के ही द्वारा बनाई चीजों में घिर गया है बहुत ।
हमारी हालत वैसी है जैसे कभी छोटे-छोटे बच्चे कहीं कोई मकान बन रहा हो. . मैंने देखा, एक दिन मैं रास्ते से गुजरता था। एक मकान बन रहा था। रेत के और इटों के ढेर लगे थे। एक छोटे बच्चे ने खेल-खेल में अपने चारों तरफ इ]टें जमानी कीं । फिर इटें इतनी जमा लीं उसने कि वह उसके नीचे पड़ गया। फिर वह घबड़ाया, अब निकले कैसे बाहर ? चिल्लाया: 'बचाओ !' खुद ही जमा ली हैं इटें अपने चारों तरफ । अब इटों की कतार ऊंची हो गई है। अब वह घबड़ा रहा है कि मैं फंस गया । उस दिन उस बच्चे को अपनी ही जमायी हुई इटों में फंसा हुआ देखकर मुझे आदमी की याद आयी । ऐसा ही आदमी फंस गया है। अपनी ही इटें हैं जमायी हुई, लेकिन परमात्मा और स्वयं के बीच एक चीन की दीवाल खड़ी हो गई है ।
- ओशो
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