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    आदमी का मन तो बहुत कोमल है, निशान बड़ी जल्दी पड़ जाते हैं- ओशो

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     आदमी का मन तो बहुत कोमल है, निशान बड़ी जल्दी पड़ जाते हैं- ओशो 

              आदमी का मन तो बहुत कोमल है, मोम की तरह है । निशान बड़ी जल्दी पड़ जाते हैं | इसी आधार पर तो सारा विज्ञापन जीता है। बस दोहराए चले जाओ । फिकर ही मत करो कोई सुन रहा है कि नहीं । तुम सिर्फ दोहराए चले जाओ। मनुष्य विज्ञापन से जी रहा है। तुम कुछ भी सोचते हो, जब तुम जाकर दुकान में पूछते हो बिनाका टूथपेस्ट। तो तुम सोचते हो, तुम कुछ सोच-समझकर पूछ रहे हो ? कि तुमने कुछ विचार किया है कि कौन-सा टूथपेस्ट वैज्ञानिक रूप से दांतों के लिए उपयोगी है? तुमने डाक्टर से पूछा है? डाक्टरों की सलाह तुम मानोगे? 

              एक दफे एक टूथपेस्ट-कंपनी ने यह प्रयोग किया कि एक टूथपेस्ट का विज्ञापन दिया दस दुनिया के सब से बड़े दांतों के डाक्टरों के नामों के साथ। उसकी बिक्री हुई ही नहीं। दूसरा टूथपेस्ट विज्ञापन किया मरलिन मन्रो - अमरीका की बहुत प्रसिद्ध अभिनेत्री के नग्न चित्र के साथ। उसके दांत, मुस्कुराती मुस्कुराहट कि जिमी कार्टर को झेंपा दे ! खूब बिक्री हुई। और दस बड़े डाक्टर . पहले तो बड़े डाक्टरों का नाम जानता कौन? होंगे कोई, किसको लेना-देना ! और डाक्टरों की सुनता कौन ? और डाक्टरों का प्रभाव क्या पड़ता है! लेकिन सुंदर अभिनेत्री ! अब हेमामालिनी तुम्हारे कान में कुछ कहे, उसकी सुनोगे कि नहीं ? फुसफुसाकर कहा जाएः ‘बिनाका टूथपेस्ट।— फिर सारे दुनिया के डाक्टर चिल्लाते रहें कुछ और, कौन फिकर करता है । दोहराए जाओ । और इस ढंग से दोहराओ कि लोगों की कामनाएं और वासनाओं में उसके अंकन हो जाएं। 

              कोई भी चीज बेचनी हो, नग्न स्त्री का विज्ञापन देना पड़ता है । चीजें नहीं बिकतीं, हमेशा नग्न स्त्री बिकती है। ऐसी चीजें जिनसे कुछ लेना-देना नहीं स्त्री का, उनको भी बेचना हो तो नग्न स्त्री को खड़ा कर दो। पुरुष की आंखें एकदम फैल जाती हैं।और जब आंखें फैली होती हैं ... तुम चकित होओगे, यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूं कोई, काव्य की भाषा में नहीं कह रहा हूं कि आंखें फैल जाती हैं, विज्ञान की भाषा में आंखें फैल जाती हैं। वह जो तुम्हारी आंख की पुतली है, जब तुम नग्न स्त्री को देखते हो, एकदम बड़ी हो जाती है। क्योंकि तुम चाहते हो कि पूरी की पूरी गप कर जाओ। तो छोटा-सा छेद पुतली का, उसमें से कहां जाएगी ? हेमामालिनी जरा मोटी भी है ! तो आंख की पुतली एकदम बड़ी हो जाती है। वह तुम्हारी आंख की पुतली पी रही है । वह पी रही है हेमामालिनी को, मगर साथ में बिनाका टूथपेस्ट भी चला जा रहा है । 

              फिर जगह-जगह विज्ञापन। अखबार – बिनाका टूथपेस्ट । रेडियो– बिनाका गीतमाला। फिर सीलोन हो कि आदिस अबाबा - बिनाका । रास्ते पर निकलो, बड़े-बड़े अक्षरों में बिनाका । जहां जाओ वहां बिनाका। तुम्हें खयाल भी नहीं आता कि क्या हो रहा है। एक दिन तुम जाते हो दुकान पर और दुकानदार पूछता है, कौन - सा टूथपेस्ट ? और तुम कहते हो, बिनाका !

    - ओशो 


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