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    सत्य सोचा नहीं जाता, देखा जाता है -ओशो

    Truth is not thought, it is seen - Osho
    Truth is not thought, it is seen - Osho

     सत्य सोचा नहीं जाता, देखा जाता है -ओशो 

    साधारणत: लोग सोचते हैं कि आदमी जितना विचार करेगा, उतनी ज्यादा विचार की शक्ति जाग्रत होगी, लेकिन यह गलत है। जो आदमी जितना निर्विचार होने की साधना करेगा, उतनी उसकी विचार की शक्ति जाग्रत होती है। विचार आप क्या करेंगे? जब भी आप विचार करेंगे, तब आप दूसरों के विचारों को दोहराते रहेंगे। जब भी आप विचार करेंगे, तब आपकी स्मृति, आपकी मेमोरी उपयोग में आती रहेगी।

            अधिकतर लोग स्मृति को ही ज्ञान समझ लेते हैं, स्मृति को ही विचार समझ लेते हैं | जब आप सोचते हैं, तब आपके भीतर गीता बोलने लगती है, महावीर और बुद्ध बोलने लगते हैं। जब आप सोचते हैं तो आपका धर्म, आपकी शिक्षाएं, जो आपको सिखायी गई हैं, आपको भीतर बोलने लगती हैं। तब सचेत हो जाना चाहिए। ये ि वचार नहीं हैं4 यह बिलकुल यांत्रिक स्मृति है। यह बिलकुल मैकेनिकल मेमोरी है ज । भर दी गयी है और बोलना शुरू कर रही है। इसको जो विचार समझ लेगा, वह गलती में पड़ जाएगा। जो इसका अनुसंधान करेगा, वह विचार से विचार में भटकत [ रहेगा और समाप्त हो जाएगा। उसे सत्य का कोई अनुभव नहीं होगा। फिर विचारों के लिए क्या करना होगा? विचार की शक्ति को जिसे जगाना है, उसे । विचार करना छोड़ना होगा। उसे निर्विचार में ठहराना होगा। 

            हम इस निर्विचारणा की स्थिति को अपने देश में समाधि कहते हैं। जो निर्विचार में ठहर जाता है, थाटलेसनेस में जहां कोई विचार नहीं है, ऐसी निष्कंप अवस्था में ठ हर जाता है, जैसे किसी भवन में कोई दीया जलता हो और कोई हवाएं न आती ह में और दीए की बाती बिलकुल ठहर जाए, ऐसे ही जब कोई व्यक्ति अपनी चेतना। को, अपनी कांशसनेस को, अपनी अवेयरनेस को, अपने होश को ठहरा लेता है औरउसमें कोई कंप नहीं आते। उस निर्विचार, निष्कंप क्षण में उसके भीतर विचार की चरम शक्ति का जागरण होता है। और तब जो देखता है, उसे आंखें मिलती हैं। समाधि से आंखें मिलती हैं और व्यक्ति सत्य को देख पाता है। सत्य सोचा नहीं जा ता, देखा जाता है।

    -ओशो

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