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    कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता - ओशो

    A wise man never becomes a follower of anyone - Osho


    कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता - ओशो 

    जो आदमी भी किसी का अनुयायी बनता है, वह आदमी पहली तो बात है खतरनाक है, डेंजरस है। क्योंकि कोई बुद्धिमान आदमी कभी किसी का अनुयायी नहीं बनता है; सिर्फ बुद्धिहीन लोग अनुयायी बनते हैं। अनुयायियों की जमात बुद्धिहीनों की जमात है; स्टुपिडिटी की जमात है; जहां सारे बुद्धिहीन इकट्ठे हो जाते हैं। 

            मैंने सुना है, एक बार एक आदमी को सत्य मिल गया। शैतान के शिष्य भागे हए शैतान के पास गए और उन्होंने कहा, क्या सो रहे हो, एक आदमी को सत्य मिल गया है! सब मुश्किल पड़ जाएगी। शैतान ने कहा, - घबराओ मत, जाकर गांव में खबर कर दो कि एक आदमी को सत्य मिल गया है, किसी को अनुयायी बनना हो तो बन जाओ। शैतान के शिष्यों ने कहा, इससे क्या फायदा होगा; हम ही प्रचार करें? शैतान ने कहा कि मेरे हजारों साल का अनुभव यह है कि अगर किसी आदमी को सत्य मिला हो और उस आदमी को और उसके सत्य को खत्म करना हो तो अनुयायियों की भीड़ इकट्ठी कर दो। तुम जाओ, गांव-गांव में कुंडी पीट दो कि किसी आदमी को अगर सत्य गुरु चाहिए हो तो सत्य गुरु पैदा हो गया है। तो जितने मूढ होंगे वे भाग कर उसके आस-पास इकट्ठे हो जाएंगे और एक बुद्धिमान आदमी हजार मूढों के बीच में क्या कर सकता है! और यही हुआ। शैतान के शिष्यों ने गांव-गांव में खबर कर दी। जितने बुद्धिहीन जन थे वे सब इकट्ठे हो गए। और वह आदमी भागने लगा कि मुझे बचाओ। लेकिन उसे कौन बचाता! शिष्यों ने उसे जोर से पकड़ लिया। 

            दुश्मन से आप बच सकते हैं, शिष्यों से कैसे बच सकते हैं? इसलिए अगर कभी किसी को सत्य मिल जाए तो अनुयायियों से सावधान रहना, शिष्यों से बचना। वे हमेशा तैयार हैं, शैतान उनको सिखा कर भेजता है। गांधी जिंदगी भर चिल्लाते रहे कि मेरा कोई वाद नहीं है और अब गांधीवादी उनके वाद को सुव्यवस्था देने की कोशिश में लगे हैं। वे रिसर्च कर रहे हैं, शोध-केंद्र बना रहे हैं, स्कॉलरशिप्स दे रहे हैं, और कह रहे हैं कि गांधी के वाद का रेखाबद्ध रूप तय करो। गांधी के वाद को खड़ा किया जा रहा है। गांधी जिंदगी भर कोशिश करते रहे कि मेरा कोई वाद नहीं है। सच बात तो यह है कि किसी भी विवेकशील आदमी का कोई वाद नहीं होता। विवेकशील आदमी प्रतिपल अपने विवेक से जीता है, वाद के आधार पर नहीं। वाद के आधार पर वे जीते हैं जिनके पास विवेक नहीं होता है।

    - ओशो 

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