सिद्धार्थ उपनिषद Page 107
(348)
याद रखना बिना कर्म के मुक्त नहीं हो सकते हो . पहले कर्म तुमने सकाम किया, फल की प्राप्ति के लिए किया . अब केवल कर्म करने का "मजा" लेने के लिए... कर्म का "मजा" लेने के लिए कर्म कर रहे हो . तब तुम मुक्ति , निर्वाण को प्राप्त... अर्थात सानंद कर्म मुक्ति देता है . और सकाम कर्म बंधन देता है .
(349)
परमात्मा की भक्ति मुक्ति नहीं देती है . इसको ठीक से समझ लो . परमात्मा की भक्ति तुम्हें केवल मुक्ति की क्षमता देती है . अब तुम नाचते हुए कर्म कर सकते हो , अब गाते हुए कर्म कर सकते हो , अब तुम सानंद कर्म करने के लिय qualified हो गए हो .
(350)
लेकिन कर्म से ही एक भक्त भी मुक्त होता है . और कौन सा कर्म सानंद होता है ? गुरु का कर्म सानंद होता है . गुरु की टहल , गुरु की सेवा ; गुरु जो कहे " गुरु कहै सो कीजिए ." यही तुम्हें मुक्ति देता है . तो याद रखो गुरु के काम को आगे बढ़ाना यही सानंद कर्म है . और कोई भी कर्म सानंद नहीं होता है .