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    तुम्हारी आंख का प्रेम देख लिया, उसमें अमृत बरस गया - ओशो

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    तुम्हारी आंख का प्रेम देख लिया, उसमें अमृत बरस गया - ओशो 

              हर चैतन्य परमात्मा की तरफ जा हा है। क्योंकि चैतन्य उस परम चेतना की किरणें हैं; वे अपने मूल उद्गम को खोज रही हैं। और जब तक मूल उद्गम न मिले तब तक विश्राम नहीं है। तुमसों मन लागो है मोरा ! हम तुम बैठे रही अटरिया, भला बना है जोरा । और अब जगजीवन कहते हैं कि बन गई जोड़ी । रच गया विवाह | आ गई सुहागरात जिसका कोई अंत नहीं होता । अटरिया पर बैठे हैं। बड़ी ऊंचाई पर बैठे हैं क्योंकि यह मिलन बड़ी ऊंचाई पर होता है। अब यह तो गैर- पढ़े-लिखे आदमी की भाषा है इसलिए अटरिया । अगर पतंजलि कहते तो कहते, सहस्रार। वह पढ़े-लिखे आदमी की भाषा है। अगर बुद्ध कहते तो कहते, निर्वाण । वह सुसंस्कृत आदमी की भाषा है। अगर महावीर कहते तो कहते, मोक्ष | बेचारे जगजीवन कहते हैं। गांव में अटारी से बड़ी और तो कोई ची होती नहीं। और अटारी भी क्या कोई खास अटारी होती है ! दो मंजिल का मकान हो उसको गांव में अटारी कहते हैं।

              मैं जिस घर में पैदा हुआ उसको उस गांव के लोग अटारी कहते हैं। दो मंजिल का मकान! कुल तीन सौ रुपए में बिका। उसको गांव के लोग अटारी कहते हैं । मगर गांव के आदमी थे जगजीवन । अपनी ही तो भाषा बोलेंगे न! हम तुम बैठे रही अटरिया, भला बना है जोरा बैठे हैं, बड़ी ऊंचाई पर – अटारी पर। खूब जोड़ा बना है । सत की सेज बिछायसूति रह . और हमने सत्य की सेज बिछा ली है। सत्य की सेज को बिछाकर हम सो रहे हैं साथ-साथ । मिलन हुआ है, प्रेम हुआ है। प्रेम में डुबकी मार रहे हैं। . सुख आनंद घनेरा और बड़ा घना सुख है और अपूर्व आनंद है । आ गई अंतिम घड़ी मिलन की । करता हरता तुम हीं आहहुतुम्हीं हो करनेवाले, तुम्हीं हो हरने वाले करौं मैं कौन निहोराअब तो मैं विनती भी क्या करूं! अब तो मैं प्रार्थना भी क्या करूं! जो ठीक होता है, सदा कर ही देते हो। देखो बुल्लेशाह को भेज दिया । मैं तो अपनी बांसुरी बजा रहा था, अपने गाय-बैल चरा रहा था। देखो बुल्लेशाह के हाथ से तुमने अपना हाथ मेरे सिर पर रख दिया। देखो मेरी तो कुछ हैसियत न थी । न कोई साधना की, न कोई सिद्धि, न कोई जप | तुम आ गए अचानक, जला दिया सब कूड़ा-करकट । कर दिया मुझे कुंदन । कर दिया मुझे शुद्ध । 

              तो अब तो विनती भी क्या करूं ! अब तुमसे मांगूं क्या? तुम तो बिन मांगे दे देते हो। करता हरता तुमहीं आहहु, करौं मैं कौन निहोरारह्यो अजान अब जानि परयो है अब तक तो अजान था तो मांगता था । क्षमा कर देना । तुमसे कभी कुछ मांगा हो, माफ कर देना । अजान था तो प्रार्थना कर लेता था कि ऐसा करो प्रभु, कि वैसा करो प्रभु । रह्यो अजान अब जान परयो है - लेकिन अब तो मैं जान गया । और जाना कैसे ? – जब चितयो एक कोरातुमने प्यार-भरी एक नजर से देख लिया बस । बस जान गया सब । एक बार तुमने प्यार-भरी नजर से देख लिया, बस जान गया सब । जब चितयो एक कोरा - आंख की एक कोर से मुझे देख लिया, इतना पर्याप्त है। मुझ भिखारी को सम्राट् बना दिया। अब निर्वाह किए बन अइहे . . . और अब कोई चिंता नहीं है। अब तो सब निर्वाह कर लूंगा । अब तो सुख आए, दुःख आए; सफलता हो, विफलता हो; स्वास्थ्य हो, बीमारी हो; जीवन हो, मृत्यु हो, अब कोई चिंता नहीं है । तुम्हारी आंख का प्रेम देख लिया, उसमें अमृत बरस गया है । अब निरवाह किए बन अइहे - अब तो सब निर्वाह कर लूंगा। अब तुमसे क्या प्रार्थना करनी ! लाय प्रीति नहिं तरि डोरा—अब तो मुझे पक्का भरोसा आ गया है कि प्रेम का जो धागा तुमसे मेरा बंध गया है, अब टूटनेवाला नहीं है। अब टूट नहीं सकता। मेरे किए बना होता तो शायद टूट भी जाता, तुम्हारे ही किए बना है, कैसे टूट सकता है ?

    - ओशो 

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