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    बुद्ध का, कृष्ण का, क्राइस्ट का मार्ग तो राजपथ है- ओशो

    The path of Buddha, Krishna and Christ is the royal path - Osho


     बुद्ध का, कृष्ण का, क्राइस्ट का मार्ग तो राजपथ है।


           राजपथ का अपना सौंदर्य है, अपनी सुविधा, अपनी सुरक्षा | सुंदरदास, दादूदयाल या अब जिस यात्रा पर हम चल रहे हैं— जगजीवन साहब – इनके रास्ते पगडंडियां हैं। पगडंडियों का अपना सौंदर्य है। पहुंचाते तो राजपथ भी उसी शिखर पर हैं जहां पगडंडियां पहुंचाती हैं। राजपथों पर भीड़ चलती है; बहुत लोग चलते हैं - हजारों, लाखों, करोड़ों । पगडंडियों पर इक्के-दुक्के लोग चलते हैं। पगडंडियों के कष्ट भी हैं, चुनौतियां भी हैं। पगडंडियां छोटे-छोटे मार्ग हैं। पहाड़ की चढ़ाई करनी हो, दोनों तरह से हो सकती है। लेकिन जिसे पगडंडी पर चढ़ने का मजा आ गया वह राजपथ से बचेगा। 

           अकेले होने का सौंदर्य – वृक्षों के साथ, पक्षियों के साथ, चांद-तारों के साथ, झरनों के साथ राजपथ उन्होंने निर्माण किए हैं जो बड़े विचारशील लोग थे । राजपथ निर्माण करना हो तो अत्यंत सुविचारित ढंग से ही हो सकता है। पगडंडियां उन्होंने निर्मित की हैं, जो न तो पढ़े-लिखे थे, न जिनके पास विचार की कोई व्यवस्था थी— अपढ़; जिन्हें हम कहें गंवार; जिन्हें काला अक्षर भैंस बराबर था। लेकिन यह स्मरण रखना कि परमात्मा को पाने के लिए ज्ञानी को ज्यादा कठिनाई पड़ती है । बुद्ध को ज्यादा कठिनाई पड़ी । सुशिक्षित थे, सुसंस्कृत थे। शास्त्र की छाया थी ऊपर बहुत । सम्राट् के बेटे थे। जो श्रेष्ठतम शिक्षा उपलब्ध हो सकती थी, उपलब्ध हुई थी। उसी शिक्षा को काटने में वर्षो लग गए। उसी शिक्षा से मुक्त होने में बड़ा श्रम उठाना पड़ा। बुद्ध छह वर्ष तक जो तपश्चर्या किए, उस तपश्चर्या में शिक्षा के द्वारा डाले गए संस्कारों को काटने की ही योजना थी। महावीर बारह वर्ष तक मौन रहे। उस मौन में जो शब्द सीखे थे, सिखाए गए थे उन्हें भुलाने का प्रयास था । बारह वर्षो के सतत मौन के बाद इस योग्य हुए कि शब्द से छुटकारा हो सका । और जहां शब्द से छुटकारा है वहीं निःशब्द से मिलन है । और जहां चित्त शास्त्र के भार से मुक्त है वहीं निर्भार होकर उड़ने में समर्थ है। जब तक छाती पर शास्त्रों का बोझ है, तुम उड़ न सकोगे; तुम्हारे पंख फैल न सकेंगे आकाश में ।

    -ओशो 


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