तेरे सिवाय कुछ भी सच्चा नहीं है- ओशो
तेरे सिवाय कुछ भी सच्चा नहीं है- ओशो
सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है।
जहंवां सुमिरन होय, धन्य सो ठाम है।।
जहां तेरा स्मरण चल रहा हो, जहां चार दीवाने मिलकर तेरी याद करते हों-वहीं ती र्थ है, वहीं मंदिर है। और तेरे सिवाय कुछ भी सच्चा नहीं है। बाकी सब नाते झूठे, सब रिश्ते झूठे। वस शब्द ही शब्द हैं नाते और रिश्ते।
हमारे नाते रिश्ते भी क्या हैं? शायद झगड़ने की थोड़ी व्यवस्थित पद्धतियां हैं। जिनको कहो पति-पत्नी, कहते तो हैं प्रेम का नाता, लेकिन प्रेम तो शायद कभी क्षण दो-क्ष ण को होता हो तो होता हो, बाकी समय तो कलह और संघर्ष है। मां-बाप और बच् चों के बीच कलह और संघर्ष है। पीढ़ियों के बीच इतना फासला है कि बात करनी मु श्किल है। बच्चे मां-बाप से बोलते ही तब हैं जब उन्हें पैसे की जरूरत हो। मां-बाप व च्चों से बोलते ही तव हैं जब उन्हें डांटने-डपटने का जोश आ जाए। नहीं तो कोई औ र संबंध नहीं है।
पति-पत्नी छुट्टियां मनाने के लिए एक होटल में गए। वहां पर उन्होंने ठहरने के लिए कमरा मांगा। मैनेजर बोला : पहले आप इस बात का प्रमाणपत्र दीजिए कि आप पति -पत्नी ही हैं।
रही होगी निश्चित ही दिल्ली की होटल!
पत्नी ने यह सुना ही था कि गुस्से से टेहुनी मारी अपने पति को और बोली कि हजार
दफे कहा कि प्रमाणपत्र साथ लेकर चला करो। आप जब घर से चलते हैं, प्रमाणपत्र
साथ क्यों लेकर नहीं चलते? जवाब दो!
मैनेजर ने मुस्करा कर चावी दे दी और कहा कि साहब, प्रमाणपत्र मिल गया, लीजिए चाबी और भीतर जाइए! आप पक्के पति-पत्नी हैं। और किसी प्रमाणपत्र की आवश्य कता नहीं है।
- ओशो
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