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    परमात्मा की तरफ जाना हो तो निर्भार होना जरूरी है- ओशो

    If you want to go towards God, you must be free of burdens - Osho


    परमात्मा की तरफ जाना हो तो निर्भार होना जरूरी है

                जैसे कोई पहाड़ चढ़ता है तो जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ने लगती है वैसे-वैसे भार भारी मालूम होने लगता है । सारा भार छोड़ देना पड़ता है। अंततः तो आदमी जब पहुंचता है शिखर पर तो बिल्कुल निर्भार हो जाता है । और जितना ऊंचा शिखर हो उतना ही निर्भार होने की शर्त पूरी करनी पड़ती है। महावीर पर बड़ा बोझ रहा होगा। किसी ने भी इस तरह से बात देखी नहीं है। बारह वर्ष मौन होने में लग जाएं, इसका अर्थ क्या होता है? इसका अर्थ होता है कि भीतर चित्त बड़ा मुखर रहा होगा । शब्दों की धूम मची होगी। शास्त्र पंक्तिबद्ध खड़े होंगे। सिद्धांतों का जंगल होगा। तब तो बारह वर्ष लगे इस जंगल को काटने में । बारह वर्ष जलाया तब यह जंगल जला; तब सन्नाटा आया; तब शून्य उतरा; तब सत्य का साक्षात्कार हुआ। पंडित सत्य की खोज में निकले तो देर लगनी स्वाभाविक है। अक्सर तो पंडित निकलता नहीं सत्य की खोज में। क्योंकि पंडित को यह भ्रांति होती है कि मुझे तो मालूम ही है, खोज क्या करनी है ? वे थोड़े-से पंडित सत्य की खोज में निकलते हैं जो ईमानदार हैं; जो जानते हैं कि जो मैं जानता हूं वह सब उधार है । और जो मुझे जानना है, अभी मैंने जाना नहीं ।

    - ओशो 

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