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    सद्गुरु तुम्हें पुकारता है तुम्हारी कब्र से उठो ! जागो ! - ओशो

     

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    सद्गुरु तुम्हें पुकारता है तुम्हारी कब्र से उठो ! जागो ! - ओशो 

    जीसस ने अंधों को आंखें दीं, बहरों को कान दिए, गूंगों को जबान दी, लंगड़ों को पैर दिए, मुदा को जिंदगी दी-ये प्रतीक हैं। तुम सब अंधे हो। तुम सव वहरे हो। तुम स व गूंगे हो। तुम सब लंगड़े हो। तुम सब मर चुके हो-जन्म के पहले ही मर चुके हो। तुम सब कब्रों में जी रहे हो। तुम्हारी देह तुम्हारी कब्र के अतिरिक्त और कुछ भी नह है।

    सद्गुरु तुम्हें पुकारता है तुम्हारी कब्र से उठो ! जागो ! वह पुकारता है। उसकी पुकार अगर तुम सुन लो तो तुम्हारा बहरापन खो जाए। उसका स्पर्श अगर तुम अनुभव कर लो तो तुम्हारी बंद आंखें खुल जाएं। बंद आंखे खुल जाएं अर्थात् अब तक जो धुंध था, वह छंट जाए; जो अंधेरा था, वह कट जाए; जो परदा था, वह हट जाए। गूंगे व ोलने लगें, लंगड़े पहाड़ चढ़ जाएं। ये सिर्प प्रतीक हैं इस बात के कि तुम्हारी यह संभा वना है, किसी सद्गुरु के सान्निध्य में सत्य बन सकती है। तुम लंगड़े नहीं हो, तुम जी वन के परम शिखर पर चढ़ने के योग्य हो, मगर तुम्हें अपनी योग्यता भूल गयी है। जैसे किसी पक्षी को अपने पंखों की याद न रही हो।

    और ऐसा हो सकता है।

    तुम्हारे घर में तुम एक अंडे से एक कबूतर को निकाल लो और उस कबूतर को कभ ी दूसरे कबूतरों से न मिलने दो। उस कबूतरों की दुनिया से उस कबूतर को तुम दूर ही रखो। उसे पता ही न चले कि और भी कोई मेरे जैसे हैं, कि और भी कोई हैं मेरे जैसे जो दूर दूर नील गगन में उड़ जाते हैं, जो चांद तारों से मुलाकात करने की अ भीसा रखते हैं, जो पंख फैलाते हैं और ऐसे खो जाते हैं अनंत आकाश में कि पता ही नहीं चलता कि बचे की नहीं! उस कबूतर को याद भी नहीं आएगी अपने पंखों की। कैसे याद आएगी!

    - ओशो 

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