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    भीतर की घड़ी रुकते ही जन्मों की यात्रा रुक जाती है- ओशो

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    भीतर की घड़ी रुकते ही जन्मों की यात्रा रुक जाती है- ओशो 

    मुल्ला नसरुद्दीन घर लौटा रात... वही फिर तीन बजे । ज्यादा देर मधुशाला में जमा रहता है। जब मधुशाला बंद होती तभी उठता है। तीन बजे मधुशाला बंद होती है, त ब वह उठता है।... घर आया तो नौकरानी द्वार पर ही मिली। इधर घड़ी ने तीन के घंटे बजाए और नौकरानी ने कहा कि आप रहे कहां, मालिक? पता है, आपकी प त्नी को बच्चे हुए? और तीन बच्चे एक साथ हुए। मुल्ला ने कहा, धन्य हो परमात्मा का! अच्छा हुआ कि वारह बजे नहीं लौटा !

    बाहर एक घड़ी है। वह तो कृत्रिम है; वह तो कामचलाऊ है। भीतर एक घड़ी है-जैि वक घड़ी, बायोलाजिकल । उस घड़ी से भी मुक्त होना है। उस घड़ी से वही मुक्त हो सकता है जो अति की व्यर्थता को समझ ले। लेकिन बड़ी सावधानी चाहिए। क्योंकि मन का नियम यह है कि जब एक चीज से ऊबता है तो तत्क्षण उसके विपरीत चीज को चुन लेता है। सोचता है इसमें रस नहीं मिला तो शायद उल्टे में रस मिलेगा। फिर जव उससे ऊब जाता है तो फिर उल्टे तक पहुंच जाता है और ऐसे ही डोलता रहता है और इसी तरह भीतर की घड़ी चलती है। और भीतर की घड़ी ही तुम्हारे तथा कथित जीवन का आधार है। फिर एक जन्म चलता है। दूसरा जन्म चलता है, जन्मों पर जन्म चलते हैं; भीतर की घड़ी चलती रहती है तो जन्मों की यात्रा चलती रहती है। भीतर की घड़ी रुक जाती है, जन्मों की यात्रा रुक जाती है।

    - ओशो 

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