तुम समय नहीं काट रहे हो, समय तुम्हें काट रहा है - ओशो
तुम समय नहीं काट रहे हो, समय तुम्हें काट रहा है - ओशो
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी!
मलूकदास ने जिंदगी को सब तरफ से टटोला, खोजा, पहचाना, अनुभव किया-पायाि क बिल्कुल थोथी है। समय भर गंवाना हो तो बात और।
लेकिन लोग बड़े अजीब हैं। ताश खेलते हैं, शतरंज के मोहरे चलाते हैं। असली हाथी- घोड़े नहीं हैं पास, तो लकड़ी के हाथी घोड़े-या ज़रा पैसे पास में हुए तो हाथी दांत के हाथी घोड़े और उनसे पूछो कि क्या कर रहे हो? ये चालें, ये जीतें, ये हारें, ये म ातें! तो वो कहते हैं : समय काट रहे हैं। पागल हो! समय तुम्हें काट रहा है या तुम समय काट रहे हो? होश ठिकाने हैं? समय की तलवार तुम्हें रोज काटे जा रही है। तुम्हारी गर्दन रोज कटती जा रही है। तुम रोज मर रहे हो। और समय क्या इतना ज्यादा है तुम्हारे पास कि उसे काटो ? थोड़ा सा तो समय है और इसी थोड़े समय में पहचान लेना है कि सत्य क्या है। इसी थोड़े समय में आत्म-परिचय करना है, आत्मब ोध करना है, आत्म साक्षात्कार करना है। लेकिन बस लोग हैं कि वेहोशी में भागे चले जा रहे हैं। भीड़ है, भीड़ के साथ भागे चले जा रहे हैं। ज़रा भी होश नहीं है।
- ओशो
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