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    जिस समय में परमात्मा मिल सकता है. उसको खिलौनों में काट रहे हो - ओशो

     

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    जिस समय में परमात्मा मिल सकता है. उसको खिलौनों में काट रहे हो - ओशो 

    ढब्बूजी घर पहुंचे। जोर से चिल्ला कर बोले : हाय, हाय, मेरी जेब कट गयी! उनकी पत्नी ने जोर से आंखें गड़ा कर ढब्बूजी को देखा और कहा कि पर जेबकतरे ने तुम्ह ारी जेब में हाथ डाला तब तुम्हें पता नहीं चला ? बोलो, बोलते क्यों नहीं?

    ढब्बूजी की आंखें नीचे झुक गयीं, कहा : पता क्यों नहीं चला...। पर मैंने सोचा कि वह मेरा ही हाथ है।

    होश कहां! बेहोशी चल रही है। तुम होश में जी रहे हो? होश में तुम समय काटोगे? इतना समय तुम्हारे पास है? और समय जैसा वहुमूल्य और क्या है? गया एक बार हाथ से तो फिर लौटेगा नहीं। फिर लाख उपाय करोगे तो एक क्षण भी वापिस नहीं आ सकता। इसे तुम ताश के पत्तों में और शतरंज के खेलों में और फिल्मों में बैठे हुए काट रहे हो! जिस समय में परमात्मा मिल सकता है, उसको काट रहे हो! जिस समय में मिल सकती हैं हीरों की खदानें, उनको खिलौनों में काट रहे हो!

    - ओशो 

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