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    हमने इस जगत को कांटो से भर दिया है - ओशो

     
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    हमने इस जगत को कांटो से भर दिया है - ओशो 

    बात पुराने जमाने की है। झग्गड़ मियां अपने मसखरेपन तथा हाजिरजवाबी के लिए व हुत मशहूर थे। एक जलसे में जब चाय की प्यालियां आयीं तो झग्गड़ मियां ने जोर से कहा : इधर से, इधर से! नौकरों ने झग्गड़ मियां की आवाज सुनी, जोर की आवा ज-इधर से, इधर से ! - तो उसी तरफ आ गए और वहीं से चाय शुरू की। फिर जब पान की गिलौरियां बंटने लगीं तो जनाब फिर चिल्लाने लगे : इधर से, इधर से! इत ना सुनना था कि रायबहादुर श्यामनंदन सहाय को गुस्सा आ गया। और चिढ़ कर जो र से गरजे : कौन है रे, लगाओ जूता ! अभी वे चुप भी नहीं हुए थे कि झग्गड़ मियां ने कहा : जूता ! उधर से, उधर से!

    यह हमारी जिंदगी का ढंग है। फूल फूल सब हमें मिल जाएं, कांटे कांटे सब दूसरों को मिल जाएं। मगर दूसरे भी यही कर रहे हैं : फूल-फूल उन्हें मिल जाएं, कांटे कांटे स व तुम्हें मिल जाएं। इसलिए खूव छीनाझपटी है। फूल तो छीनाझपटी में नष्ट हो जाते हैं, कांटे चुभ जाते हैं। सबके हाथ लहूलुहान हैं। फूल तो बचते नहीं, क्योंकि फूल को मल हैं। इतनी छीनाझपटी होगी तो फूल नहीं बच सकते। हां, कांटे मजबूत हैं, कांटे बच जाते हैं। सारा जगत् कांटों से भर गया है।

    - ओशो 

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