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    सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है - ओशो

     

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    सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है - ओशो 

    मैक्यावेली ने जो कि पश्चिम का चाणक्य हुआ उसने अपनी किताव में लिखा है : अ पने मित्रों को भी वह बात मत बताना जो तुम अपने शत्रुओं को न बताना चाहते हो । क्योंकि कौन मित्र कव शत्रु हो जाएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। और अपने शत्रु ओं के संबंध में भी वे बातें मत कहना जो तुम अपने मित्रों के संबंध में कहने में झि झकते होओ। क्योंकि कौन शत्रु कब मित्र हो जाएगा, क्या कहा जा सकता है। यहां शत्रु मित्र हो जाते हैं, मित्र शत्रु हो जाते हैं। यह संसार बड़ा अजीब गोरखधंधा है। इस गोरखधंधे से मलूकदास कहते हैं-विल्कुल ऊब गए; यह सब झूठ है, यह सब नाटक है! यह सब पर्दे के इस तरफ जो चल रहा है, सच्चा नहीं है, पर्दे के भीतर कुछ और ही मामला है। तुम कभी कभी रामलीला पीछे से भी जाकर देखा करो पर्दे के पीछे, जहां अभिनेता सजते हैं।

    मेरे गांव में जब भी रामलीला होती थी तो मैंने हमेशा पीछे से ही देखी है। बाहर में क्या है, एक दफा देख ली, वही का वही खेल हर साल ! मगर भीतर का खेल बड़ा अद्भुत है। मैंने सीताजी को बीड़ी के कश लगाते देखा है! वस एकदम जा रही हैं वा हर, स्वयंवर रचा जा रहा है-आखिरी कश! मैंने रावण को रामचंद्र जी को डांटते दे खा है कि क्यों रे हरामजादे, तुझे कल मेरी तरफ देखकर बोलना था और तू देख रह ा था मेरी पत्नी की तरफ ! पत्नी वहां देखनेवालों में, दर्शकों में बैठी होगी।.......

    अगर दुबारा यह हरकत की, चटनी बना दूंगा। यह असली नाटक! इसको देखना हो तो पर्दे के पीछे देखना चाहिए।

    मेरे गांव में जो मैनेजर थे वे मुझसे पूछते कि यह... तुम्हें पीछे से क्यों देखना है? स ारी वस्ती बाहर देखती है, एक अकेले तुम हो जो कहते हो कि मुझे पीछे बैठ जाने द ो! यहां पीछे क्या रखा है? मैंने कहा तुम फिक्र न करो। इससे मुझे बड़े गहरे सूत्र मलते हैं।

    जिंदगी को ज़रा गौर से देखो। ज़रा पर्दे उठाकर देखो। ज़रा ऊपर ऊपर के जो ढांचे हैं . इनके भीतर झांको और तुम भी कहोगे यही-

    सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है।

    - ओशो 

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