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    असत्य के साथ धर्म को मत जोड़ो - ओशो

     

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    असत्य के साथ धर्म को मत जोड़ो - ओशो 

    कुछ चमत्कारों की भी घटनाएं वावा मलूकदास के संबंध में जुड़ी हैं। वैसी घटनाएं क रीव-करीव अनेक संतों के साथ जुड़ जाती हैं। उनके जाने के पीछे राज है। उनको तर य मत समझना। तथ्य समझा तो भ्रांति हो जाती है। उनको केवल संकेत समझना। वे सांकेतिक हैं। जैसे जीसस के संबंध में कया है कि उन्होंने लज़ारस को मुर्दे से जगा दया, वापिस बुला लिया। आवाज दी लज़ारस, निकल कढ़ से! और लज़ारस कब्र से वाहर निकल आया। मरे चार दिन हो चुके थे! वैसी ही कहानी मलूकदास के संबंध में है कि अपने एक शिष्य को उन्होंने मौत की दुनिया से वापिस बुला लिया था। अव या तो हम इन्हें ऐतिहासिक तथ्य माने, जैसा कि ईसाई मानते हैं कि यह ऐतिहाि सक तथ्य है कि लज़ारस को जीसस ने सच में ही जिंदा किया था, और या फिर हम इन्हें गहन प्रतीक माने। ऐतिहासिक तथ्य मानो तो ये दो कौड़ी के हो जाते है। पहली तो बात ये झूठे हो जाते हैं, ये सच नहीं रह जाते हैं। जीवन में कोई अपवाद नहीं है | जीवन का नियम सबके लिए समान है। कोई मृत्यु से वापिस नहीं लोटता: कोई लोटा नहीं सकता। अगर जीसस लज़ारस को मृत्यु से वापिस लौटा सकते थे तो फिर सू ली पर मरे क्यों? खुद को न लौटा सके? लज़ारस को लौटा लिया! जैसे आवाज दी थी लज़ारस को कि लज़ारस, निकल कब्र से, वैसे ही मूली पर अपने को आवाज दे दे नी थी कि जीसस, मत मर, लगने दे सूली!

    मलूकदास ने किसी शिष्य को, मर गया था और जिंदा कर लिया! फिर मलूकदास कहो हैं? वे भी मर गए। खुद मरते वक्त याद न रही अपनी कला, अपना चमत्कार! नहीं, ये ऐतिहासिक तथ्य नही है। और जो उनको ऐतिहासिक तथ्य मानते हैं वे वहुत भयंकर भूल करते हैं। चाहे वे सोचते हो कि हम भक्त है।, लेकिन वे भक्त नहीं हैं, वे हानि पहुंचाते हैं। इसी तरह की बातों के कारण धर्म असत्य मालूम होने लगता है । धर्म के साथ अगर तुम इस तरह की वाते जोड़ दोगे, तो ये वाते तो असत्य है, इ नके साथ धर्म की नाव भी डूब जाएगी। असत्य के साथ धर्म को मत जोड़ो। लेकिन इस तरह की कहानियों में सार बहुत है।

     - ओशो 

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