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    मृत्यु में समाधि का फूल खिलता है- ओशो

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     मृत्यु में समाधि का फूल खिलता है- ओशो 


    "इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि मेरे संन्यासी को जुआरी होने की क्षमता चाहिए, साहस चाहिए। अहंकार को दांव पर लगाना कोई छोटा-मोटा खेल नहीं है। सबसे बड़ा खेल है, इससे बड़ा फिर कोई खेल भी नहीं है। क्योंकि जिस दिन, जिस क्षण तुम इ तना साहस जुटा लोगे कि कह सको कि मैं नहीं हूं, कि जान सको कि मैं नहीं हूं, कि अनुभव कर सको कि मैं नहीं हूं, कि मर जाओ स्वेच्छा से, वही संन्यास है। और उस मृत्यु में समाधि का फूल खिलता है।''

    'धनुष-वाण लिए खड़ा ही है। तुम ही छिपे हो; तुम ही सामने नहीं आते। और किस ने तुम्हें छिपाया है? तुम्हारी अस्मिता ने, तुम्हारे अहंकार ने । अहंकार तुम्हारी अपनी ईजाद है, आत्मा परमात्मा की भेंट । तुम आत्मा हो, अहंकार नहीं।

    इन वचनों को एक खोजी, एक सत्यार्थी की तरह लेना, विद्यार्थी की तरह नहीं। ये व चन तुम्हारे भीतर नए-नए द्वार खोल सकते हैं। ये किसी पंडित के वचन नहीं हैं, एक प्रज्ञा-पुरुष के वचन हैं। एक अलमस्त के वचन हैं, जिसने पिआ है उसकी शराव को

    और जाना है उसके नशे को, जो मस्त हुआ है उसमें डूबकर । ये वचन नहीं हैं, जलते हुए अंगारे हैं। ये मात्र वचन नहीं हैं; ये तुम्हारे जीवन को रू पांतरित कर दें, ऐसी कीमिया इनमें छिपी है।''

     - ओशो 

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