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    भौतिकवाद और आध्यात्मवाद विपरीत नहीं हैं - ओशो

     

    Materialism-and-spirituality-are-not-opposites-Osho


    भौतिकवाद और आध्यात्मवाद विपरीत नहीं हैं - ओशो 

    आत्मा और शरीर में कितना सहयोग है, गौर से देखो तो! तो भौतिकवाद और आध्यात्मवाद विपरीत नहीं हो सकते। भारत ने बड़ी भूल की है दोनों को विपरीत मानकर । पश्चिम भी भूल कर रहा है दोनों को विपरीत मानकर। प श्चिम ने भौतिकवाद चुन लिया, आध्यात्म के खिलाफ । भारत ने आध्यात्म चुन लिया, भौतिकवाद के खिलाफ । दोनों ने आधा-आधा चुना, दोनों तड़फ रहे हैं। दोनों मछली जैसे तड़फ रहे हैं, जिसका पानी खो गया है। क्योंकि पानी समग्रता में है। मेरा उद्घोष यही है कि हमें एक नई मनुष्यता का सृजन करना है। ऐसी मनुष्यता का , जो दोनों भूलों से मुक्त होगी। जो न भौतिकवादी होगी न आध्यात्मवादी होगी, जो समग्रवादी होगी। जो न तो देहवादी होगी, न आत्मवादी होगी, जो समग्रवादी होगी। जो बाहर को भी अंगीकार करेगी और भीतर को भी। बाहर और भीतर में जो विरो ध खड़ा न करेगी। जो बाहर और भीतर के बीच संबंध बनाएगी, सेतु बनाएगी। एक ऐसी मनुष्यता का जन्म होना चाहिए। उसी मनुष्यता के जन्म के लिए प्रयास चल रहा है।

    मेरा संन्यासी उसी नए मनुष्य की पहली पहली खबर है। वह संसार को स्वीकार करत [ है। और फिर भी आध्यात्म को इनकार नहीं करता। वह आध्यात्म को स्वीकार कर ता है, फिर भी संसार को इनकार नहीं करता। वह संसार में रहकर और संसार के बाहर कैसे रहा जाए, इसका अनूठा प्रयोग कर रहा है।"

    "इसलिए तुम्हें यहां प्रसन्नता दिखाई पड़ेगी, आह्लाद दिखाई पड़ेगा, वसंत दिखाई पड़े गा। फूल खिलते मालूम होंगे। ये तुम जैसे ही लोग हैं। ठीक तुम जैसे। तुम्हारे जैसे सं सार में रहते हैं, दुकान करते हैं, नौकरी करते हैं, बच्चे हैं, पत्नियां हैं, सब कुछ है। क्योंकि मैं किसी चीज से किसी को छुड़ाना नहीं चाहता। किसी को कहीं से व्यर्थ तोड़ ना नहीं चाहता। मैं खिलाफ हूं उस संन्यास के जो भगोड़ापन सिखाता है। क्योंकि उस भगोड़े संन्यास ने दुनिया को बहुत कष्ट दिए हैं। वह किसी ने हिसाव नहीं रखा कि जब करोड़ों-करोड़ों लोग संन्यासी हुए, तो उनकी पत्नियों को क्या हुआ, उनके बच्चों को क्या हुआ? बच्चों ने भीख मांगी, चोर बने; पत्नियां वेश्याएं हो गईं, कि उन्हें भी ख मांगने पर मजबूर होना पड़ा, दूसरों के वर्तन मलने पड़े ! क्या हुआ उनकी पत्नियों का, क्या हुआ उनके बच्चों का, उनका हिसाब किसी ने भी नहीं रखा। अगर उनका हिसाव रखा जाए तो तुम बहुत हैरान होओगे। तुम्हारे तथाकथित संन्यासियों ने जित ने लोगों को कष्ट दिया है, उतना किसी और ने नहीं दिया। एक-एक संन्यासी न-मालू म कितने लोगों को कष्ट दे गया! मां है बूढ़ी, पिता है बूढ़ा, वच्चे हैं छोटे, पत्नी है, और रिश्तेदार हैं-और भाग गया! एक संन्यासी कम-से-कम दस-पच्चीस लोगों को दुः ख दे जाएगा-जितने लोग उससे संबंधित हैं।

     - ओशो 

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