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    मैं ध्यान सिखाता हूं, आराधना नहीं - ओशो

    I teach meditation, not worship - Osho

    मैं ध्यान सिखाता हूं, आराधना नहीं - ओशो 

    मैं ध्यान सिखाता हूं, आराधना नहीं। आराधना तो अनिवार्य रूप से किसी व्यक्तिवाची परमात्मा को मान कर चलती है। कोई परमात्मा है जिसकी स्तुति करो, जिसका गुणगान गाओ, जिसकी खुशामद करो--स्तुति का मतलब खुशामद--और जिस पर रिश्वत चढ़ाओ। और पता नहीं यह परमात्मा को भी कैसी-कैसी ि आती हैं! नारियल चढ़ाओ! इनका अभी नारियल से जी नहीं भरा! सदियां हो गईं, लोग नारियल फोड़े चले जा रहे हैं। लेकिन ये सब रिश्वतें हैं। एक नारियल चढ़ा देते हो और कहते हो कि मेरे लड़के को नौकरी लगनी चाहिए। अगर न लगी तो खयाल रखना! अगर लग गई तो फिर नारियल चढ़ाऊंगा। अगर न लगी तो मुझसे बुरा कोई नहीं! कि मेरे घर बेटा पैदा हो जाए! एक नारियल! कीमत भी क्या चुका रहे हो? और नारियल चढ़ होगा, वह भी कुछ बेटा होगा? अरे नारियल ही होगा! और नारियल लगता भी आदमी के चेहरे जैसा है; आंखें भी, दाढ़ी-मूंछ भी! बस नारियल ही पैदा होंगे। 

            यह कोई परमात्मा नहीं है, जिसकी तुम प्रार्थना करो, स्तुति करो। इसी ने तुम्हें खुशामद सिखाई है। और इसीलिए भारत में रिश्वत का मिटाना बहुत मुश्किल है, असंभव है। क्योंकि यह देश तो परमात्मा तक को रिश्वत देता रहा है। ये छोटे-मोटे तहसीलदार, हवलदार, कलेक्टर, कमिश्नर, इन बेचारों की क्या हैसियत? अरे एक नारियल में परमात्मा को मना लेते हैं, थोड़ा प्रसाद चढ़ा देते हैं। ऐसे झाड़ हैं देश में जिनमें चिंदियां लटकी हुई हैं। उन झाड़ों के जो देवता हैं, चिंदियों के प्रेमी हैं। लोग जाकर मनौती कर आते हैं कि अगर मेरे घर बच्चा हुआ तो एक चिंदी बांध जाऊंगा। और स्वभावतः, अब इतने लोग मनौतियां करेंगे तो कुछ के घर तो बच्चे पैदा ही होने वाले हैं। सो वे चिंदियां बांध जाएंगे। वे चिंदियां फिर उस वृक्ष की विज्ञापन हो जाती हैं। जब इतनी चिंदियां बंधी हैं, हजारों चिंदियां वृक्ष पर बंधी हैं, जाहिर है कि वृक्ष का देवता पहुंचा हुआ देवता है। सो और-और लोग आने लगते हैं। जिनकी चिंदियां काम नहीं आईं, जिनकी इस वृक्ष ने नहीं सुनी, वे दूसरे वृक्षों की तलाश में गए। कहीं न कहीं कोई न कोई मौके-अवसर पर उनके घर भी बेटा पैदा होगा, किसी वृक्ष पर चिंदी बांधेगे वे। यह मूढता, यह बकवास है। न कोई आराध्य है, न कोई आराधना है।

    - ओशो 

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