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    कर्तव्य शब्द ही गंदा है - ओशो

     

    The word duty is dirty - Osho

    कर्तव्य शब्द ही गंदा है - ओशो 

    कर्तव्य शब्द ही गंदा है। प्रेम से जीना समझ में आता है, कर्तव्य से जीना समझ में नहीं आता। यह तुम्हारी पत्नी है, इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है कि इसको प्रेम करो। अब जब कोई कर्तव्य से प्रेम करेगा तो तुम सोच ही सकते हो कि प्रेम क्या खाक होगा! दिखावा होगा, वंचना होगी, धोखा होगा। ऊपर-ऊपर प्रेम होगा, भीतरभीतर घृणा होगी। और घृणा फूट-फूट कर निकलेगी। कितना दबाओगे? एक सीमा है दबाने की। कहां तक रोकोगे? एक तरफ से रोकोगे, दूसरी तरफ से बहेगी। वह घृणा तुम्हारे भीतर जो तुम इकट्ठी कर रहे हो-- कर्तव्य के नाम पर। और कर्तव्य सिखाया जा रहा है, हरेक को कर्तव्य सिखाया जा रहा है। प्रेम की तो बात ही मत करना। इस सूत्र में कहीं प्रेम नहीं आता। 

            ब्रह्मज्ञानी प्रेम से भरा होगा, लबालब होगा। यूं लबालब होगा कि प्रेम उसके ऊपर से बहता होगा। कर्तव्य नहीं होता ब्रह्मज्ञानी के जीवन में, प्रेम होता है। वह जो करता है प्रेम से करता है। जो उसके प्रेम में नहीं आता, नहीं करता। उसके लिए प्रेम ही एकमात्र कसौटी है। जो प्रेम पर खरा उतरता है वही सोना है और जो प्रेम पर खरा नहीं उतरता वह खोटा है। कर्तव्य सामाजिक व्यवस्था है। तुम्हें सिखाया जाता है: कर्तव्य का पालन करो। और जो कर्तव्य का पालन करेगा उसको आदर दिया जाता है, सम्मान दिया जाता है, पुरस्कार दिए जाते हैं। 

            यह प्रलोभन है। यह समाज की रिश्वत है कि तुम पद्म-विभूषण होओगे, कि भारत-रत्न बनोगे, नोबल पुरस्कार मिलेगा, कर्तव्य पूरा करो। सब कुछ स्वाहा कर दो कर्तव्य पर। अपनी बलि दे डालो कर्तव्य पर। देश के लिए बलि दो, परिवार के लिए बलि दो, धर्म के लिए बलि दो, जाति के लिए बलि दो। बस तुमसे अपेक्षा यही है कि बलि के बकरे हो जाओ! इस ईद में मरो कि उस ईद में मरो, कोई फिकर नहीं, मरो, मगर ईद में मरो! किसी न किसी ईद में कटो। किसी न किसी जिहाद में, धर्मयुद्ध में बस गर्दन तुम्हारी गिरे। और अगर धर्मयुद्ध में तुम्हारी गर्दन गिरे तो तुम्हारा बैकुंठ निश्चित है, बहिश्त निश्चित है। मुसलमान कहते हैं: जो जिहाद में मरेगा, जो धर्मयुद्ध में मरेगा, वह सीधा स्वर्ग जाता है। और वही दूसरे धर्म भी कहते हैं कि धर्म के लिए मरना स्वर्ग जाने का सुगमतम । उपाय है। इधर मरे नहीं कि उधर बैकुंठ के द्वार पर शहनाई बजी नहीं। और मर रहे हो तुम मार कर। मर रहे हो मारने में। उस हिंसा का कोई हिसाब नहीं। जो मुसलमान मर रहा है जिहाद में, वह मर किसलिए रहा है? क्योंकि मारने चला है। अनेकों को मारेगा तब मरेगा। वह अनेकों को मारा, उसका कोई हिसाब नहीं। वह जो अनेक मकान जला दिए, लोग जिंदा जला दिए, उसका कोई हिसाब नहीं।

    - ओशो 

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