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    स्वम को धार्मिक मान लेने और वास्तव में धार्मिक होने में फर्क है - ओशो

    There is a difference between believing oneself to be religious and being truly religious - Osho


    स्वम को धार्मिक मान लेने और वास्तव में धार्मिक होने में फर्क है - ओशो 

    जब तक कोई जाति, कोई समाज, कोई देश, कोई मनुष्य धार्मिक नहीं हो जाता, तब तक उसे जीवन के पूरे आनंद का, पूरी शांति । का, पूरी कृतार्थता का कोई भी अनुभव नहीं होता है। जैसे विज्ञान है बाहर के जगत के विकास के लिए और बिना विज्ञान के जैसे दीन-हीन हो जाता है समाज, दरिद्र हो जाता है, दुखी और पीड़ित और बीमार हो जाता है; विज्ञान न हो आज, तो बाहर के जगत में हम दीन-हीन, पशुओं की भांति हो जाएंगे; वैसे ही भीतर के जगत का विज्ञान धर्म है। और जब भीतर का धर्म खो जाता है, तो भीतर एक दीनता आ जाती है, हीनता आ जाती है, भीतर एक अंधेरा छा जाता है। 

            और भीतर का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि बाहर का अंधेरा दो पैसे के दीए को खरीद कर मिटाया जा सकता है, लेकिन भीतर का अंधेरा तो तभी मिटता है, जब आत्मा का दीया जल जाए। और वह दीया कहीं बाजार में खरीदने से नहीं मिलता है, उस दीए को जलाने के लिए तो श्रम करना पड़ता है, संकल्प करना पड़ता है, साधना करनी पड़ती है। उस दीए को जलाने के लिए तो जीवन को एक नई दिशा में गतिमान करना पड़ता है। लेकिन इतना निश्चित है कि आज तक पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रसन्न और आनंदित लोग वे ही थे, जो धार्मिक थे। उन लोगों ने ही इस पृथ्वी पर स्वर्ग को अनुभव किया है। उन लोगों ने ही इस जीवन के पूरे आनंद को, कृतार्थता को अनुभव किया है। उनके जीवन में ही अमृत की वर्षा हुई है जो धार्मिक थे। जो अधार्मिक हैं वे दुख में, पीडा में और नरक में जीते हैं।

            धार्मिक हुए बिना कोई मार्ग नहीं है। लेकिन धार्मिक होने के लिए सबसे बड़ी बाधा इस बात से पड़ गई है कि हम इस बात को मान कर बैठ गए हैं कि हम धार्मिक हैं। फिर अब और कुछ करने की कोई जरूरत नहीं रह गई। एक भिखारी मान लेता है कि मैं सम्राट हूं, फिर बात खत्म हो गई। फिर अब उसे सम्राट होने के लिए कोई प्रयत्न करने का कोई सवाल न रहा। सस्ती तरकीब निकाल ली उसने। सम्राट हो गया है कल्पना करके। असली में सम्राट होने के लिए श्रम करना पड़ता, यात्रा करनी पड़ती, संघर्ष करना पड़ता। उसने सपना देख लिया सम्राट होने का। लेकिन उस भिखारी को हम पागल कहेंगे, क्योंकि पागल का यही लक्षण है कि वह जो नहीं है, वह अपने को मान लेता है।

    - ओशो 

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