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    जिसकी अनुदारता तलवार में नहीं निकल सकती, उसकी तर्कों में निकलती है - ओशो

     

    One whose generosity cannot come out in the sword, comes out in his arguments, in the sword of reason - Osho

    जिसकी अनुदारता तलवार में नहीं निकल सकती, उसकी तर्कों में निकलती है - ओशो 

    ईसाइयों ने जिंदा आदमी जलाए--मगर इस आशा में कि यह धर्म का कार्य हो रहा है। और यही हिंदुओं ने किया है। और यही सारे धर्म छोटे-मोटे भेदों से करते रहे हैं। जो जिनकी संख्या छोटी है, नहीं कर सके हैं, तो वे दिल में छिपाए बैठे हैं आग। संख्या छोटी है, बस इसलिए मरने-मारने की भाषा नहीं बोल सकते, तो सहिष्णुता की बातें बोलते हैं, उदारता की बातें बोलते हैं। मगर भीतर उनके अनुदारता भरी हुई है। वह उनकी अनुदारता तलवार में नहीं निकल सकती, तो तर्कों में निकलती है, तर्क की तलवार में निकलती है। 

            जैसे जैनों ने किसी को मारा नहीं, मार सकते नहीं थे। संभवतः सबसे पुराना धर्म है और संख्या कुल पैंतीस लाख! दस हजार साल में कुल संख्या पैंतीस लाख। दस हजार साल पहले अगर एक दंपति भी, एक जोड़ा भी जैन हुआ होता तो काफी था। दस हजार साल में बच्चों के बच्चे, उल्लू के पट्टे, पट्ठों के पट्टे पैंतीस लाख हो जाते। पैंतीस लाख कोई संख्या है? और जिस ढंग से भारत में आदमी बढ़ते हैं--कीड़े-मकोड़ों की तरह! उन्नीस सौ सैंतालीस में भारत आजाद हुआ तो आबादी थी पैंतीस करोड़। सिर्फ तीस तीस साल में आबादी दुगनी हो गई, आज आबादी है सत्तर करोड़। क्या उत्पादन है! क्या सृजनशीलता है! सृष्टि करना कोई अगर जानता है तो बस भारतीय ही जानते हैं। दस हजार साल में पैंतीस लाख जैन! अब बेचारे उदारता की बात न करें तो क्या करें? जैन सारे देश में सर्वधर्म-समन्वय-सम्मेलन बुलाते हैं। बुलाना पड़ता है। घबड़ाए हुए हैं, डरे हुए हैं। मगर भीतर आग जलती है। वह आग निकलती है उनकी किताबों में। उनकी किताबों में जितना जहर है उतना किसी की किताबों में नहीं। उनकी किताबों में सिर्फ तर्क है। तलवार से बचे हैं तो तर्क की तलवार उठा ली है। तो काटा-पीट में लगे हुए हैं: सब गलत है! हालांकि उनकी किताबें कोई पढ़ता नहीं सिवाय उनके, नहीं तो उनकी किताबों में जहर भरा हुआ है। कहीं न कहीं से दबी हुई मवाद निकलेगी। कर्तव्यपरायण होने से कुछ भी नहीं हो सकता।

    - ओशो 

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