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    मंदिर जाने से धर्म तक जाने का कोई भी संबंध नहीं है - ओशो

    Going to temple has nothing to do with going to religion - Osho


     मंदिर जाने से धर्म तक जाने का कोई भी संबंध नहीं है - ओशो 

    एक आदमी रोज सुबह मंदिर हो आता है और वह सोचता है कि मैं धर्म के भीतर जाकर वापस लौट आया हूं। मंदिर जाने से धर्म तक जाने का कोई भी संबंध नहीं है। मंदिर तक जाना एक बिलकुल भौतिक घटना है, शारीरिक घटना है। धर्म तक जाना एक आत्मिक घटना है। मंदिर तक जाना एक भौतिक यात्रा है। मंदिर तक जाना एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं है। सच तो यह है कि जिनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो जाती है, उन्हें सारी पृथ्वी मंदिर दिखाई पड़ने लगती है। फिर उन्हें मंदिर को खोजना बहुत मुश्किल हो जाता है 

            नानक ठहरे थे मदीना में और सो गए थे रात मंदिर की तरफ पैर करके। पुजारियों ने आकर कहा था कि हटा लो ये पैर अपने! तुम पागल हो, या कि नास्तिक हो, या कि अधार्मिक हो? तुम पवित्र मंदिर की तरफ पैर किए हुए हो? नानक ने कहा था, मैं खुद बहुत चिंता में हूं कि अपने पैर कहां करूं! तुम मेरे पैर वहां कर दो जहां परमात्मा न हो, जहां उसका पवित्र मंदिर न हो। वे पुजारी ठगे हुए खड़े रह गए। कोई रास्ता न था कि नानक के पैर कहां करें, क्योंकि जहां भी था, अगर था तो परमात्मा था। जहां भी जीवन है, वहां प्रभु का मंदिर है। तो जिन्हें धर्म की यात्रा का थोड़ा-सा भी अनुभव हो जाता है, उन्हें तो सारा जगत मंदिर दिखाई पड़ने लगता है। लेकिन जिन्हें उस यात्रा से कोई भी संबंध नहीं है, वे दस कदम चल कर जमीन पर और एक मकान तक पहुंच जाते हैं और लौट आते हैं, और सोचते हैं कि धार्मिक हो गए हैं। ऐसे हम धार्मिक होने का धोखा देते हैं अपने को।

    - ओशो 

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