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    शरीर और आत्मा का एक सम्मिलित संगीत है - ओशो

    There is music of body and soul - Osho


    शरीर और आत्मा का एक सम्मिलित संगीत है - ओशो 

    सारी दुनिया में ऐसे लोग थे, जो मानते थे कि मनुष्य केवल शरीर है, शरीर के अतिरिक्त कोई आत्मा नहीं है। धर्म ने ठीक दूसरी अति, दूसरी एक्सट्रीम पकड़ ली और कहा कि आदमी सिर्फ आत्मा है। शरीर तो माया है, शरीर तो झूठ ये दोनों ही बातें झूठ हैं। न तो आदमी केवल शरीर है और न आदमी केवल आत्मा है। ये दोनों बातें समान रूप से झूठ हैं। एक झूठ के विरोध में दूसरा झूठ खड़ा कर लिया। 

            पश्चिम एक झूठ बोलता रहा है कि आदमी सिर्फ शरीर है और भारत एक झूठ बोल रहा है कि आदमी सिर्फ आत्मा है। ये दोनों सरासर झूठ हैं। पश्चिम अपने झूठ के कारण अधार्मिक हो गया, क्योंकि सिर्फ शरीर को मानने वाले लोग, उनके लिए धर्म का कोई सवाल न रहा। भारत अपने झूठ के कारण अधार्मिक हो गया, क्योंकि सिर्फ आत्मा को मानने वाले लोग शरीर का जो जीवन है, उसकी तरफ आंख बंद कर लिए। जो माया है, उसका विचार भी क्या करना? जो है ही नहीं, उसके संबंध में सोचना भी क्या? 

            जब कि आदमी की जिंदगी शरीर और आत्मा का जोड़ है। वह शरीर और आत्मा का एक सम्मिलित संगीत है। अगर हम आदमी को धार्मिक बनाना चाहते हैं, तो उसके शरीर को भी स्वीकार करना होगा, उसकी आत्मा को भी। निश्चित ही, उसके शरीर को बिना स्वीकार किए हम उसकी आत्मा की खोज में भी एक इंच आगे नहीं बढ़ सकते हैं। शरीर तो मिल भी जाए बिना आत्मा का कहीं, लेकिन आत्मा बिना शरीर की नहीं मिलती। शरीर आधार है, उस आधार पर ही आत्मा अभिव्यक्त होती है। वह मीडियम है, वह माध्यम है। इस माध्यम को इनकार जिन लोगों ने कर दिया, उन लोगों ने इस माध्यम को बदलने का, इस माध्यम को सुंदर बनाने का, इस माध्यम को ज्यादा सत्य के निकट ले जाने का सारा उपाय छोड़ दिया। शरीर का एक विरोध पैदा हुआ, एक दुश्मनी पैदा हुई। हम शरीर के शत्रु हो गए, और शरीर को जितना सताने में हम सफल हो सके, हम समझने लगे कि उतने हम धार्मिक हैं!

            हमारी सारी तपश्चर्या शरीर को सताने की अनेक-अनेक योजनाओं के अतिरिक्त और क्या है? जिसे हम तप कहते हैं, जिसे हम त्याग कहते हैं, वह शरीर की शत्रुता के अतिरिक्त और क्या है? धीरे-धीरे यह खयाल पैदा हो गया है कि जो आदमी शरीर को जितना तोड़ता है, जितना नष्ट करता है, जितना दमन करता है, उतना ही आध्यात्मिक है। शरीर को तोड़ने और नष्ट करने वाला आदमी विक्षिप्त हो सकता है, आध्यात्मिक नहीं। क्योंकि आत्मा का भी जो अनुभव है उसके लिए एक स्वस्थ, शांत और सुखी शरीर की आवश्यकता है। उस आत्मा के अनुभव के लिए भी एक ऐसे शरीर की आवश्यकता है, जिसे भूला जा सके।

    - ओशो 

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