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    पंडितों के पास धर्म नहीं होता, सिर्फ धर्म की बकवास होती है - ओशो

     

    Pundits don't have religion, only religion is rubbish - Osho

    पंडितों के पास धर्म नहीं होता, सिर्फ धर्म की बकवास होती है - ओशो 

            विनम्रता तो अहंकार पर लीपापोती है। विनम्रता तो अहंकार को सजावट देना है। अहंकार की बदबू को छिपाने के लिए थोड़ी सुगंध छिड़कना है। उसके आसपास धूप-दीप जलाना है। वह अहंकार की बचावट है। और शांति भी। और तुम्हारे तथाकथित सारे सदगुण सिर्फ धोखे हैं, प्रवंचनाएं हैं। ऐसे प्रवंचकों के पास जाकर क्या होगा? सूत्र कहता है: 'धर्मात्मा, विद्वान...।' जो विद्वान है वह धर्मात्मा नहीं हो सकता। धर्म का पंडित हो सकता है। विद्वता उसकी है, इसलिए गीता-ज्ञानमर्मज्ञ हो सकता है। जैसे मोरारजी देसाई गीता-ज्ञान-मर्मज्ञ हो गए हैं जब से वे भूत-प्रेत हुए हैं। अब और तो कुछ बचा नहीं। अब करें भी क्या? आखिर में यही रह जाता है। तो अब गीता-ज्ञान-मर्मज्ञ हो गए! पंडितों के पास धर्म नहीं होता, सिर्फ धर्म की बकवास होती है। हां, बकवास व्यवस्थित होगी, तर्कबद्ध होगी।

            और धर्म का तर्क से कोई संबंध नहीं है, व्यवस्था से भी कोई संबंध नहीं है। धर्म तो क्रांति है, बगावत है, विद्रोह है। सूत्र कहता है: । ऐसे व्यक्तियों की सेवा में उपस्थित होकर अपना समाधान करिए।' अभी जिनका समाधान खुद | वे खाक तुम्हारा समाधान करेंगे! भूल कर ऐसे आदमियों के पास मत जाना। बचना, कहीं समाधान कर ही न दें! कहीं चलते-चलते कुछ पकड़ा न दें! पहले जो पकड़ा गए हैं उनसे ही तो जान मुसीबत में पड़ी है। अब ये और न पकड़ा दें कुछ। विद्वान से बचना। पंडित से बचना। उसकी छाया से बचना। यही असली शूद्र है। देखते ही एकदम भाग खड़े होना। 'उससे समाधान प्राप्त करिए। जिसको समाधान खुद नहीं हुआ है! 'और उसके आचरण और उपदेश का अनुसरण कीजिए।' यही तुम्हारी बीमारी है। यह तो बहुत मजेदार तैतरीय उपनिषद का सूत्र हुआ। यह तो छोटी बीमारी को मिटाने के लिए और बड़ी बीमारी दे दी। अक्सर ऐसा हो जाता है कि छोटी बीमारी को भुलाने के लिए बड़ी बीमारी पकड़ा देना उपयोगी होता है।

    - ओशो 

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