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    विनम्रता के पीछे अहंकार छिपा रहता है - ओशो

     

    Ego hides behind humility - Osho

    विनम्रता के पीछे अहंकार छिपा रहता है - ओशो 

    मैंने सुना है कि लखनऊ में एक स्त्री गर्भवती हुई और गर्भवती बनी ही रही। नौ महीने आए, गुजर गए; नौ सालें आई और गजर गई। और स्त्री की मसीबत समझो। मगर लखनवी ढंग ही और, हिसाब ही और। यह तो बाद में राज खुला--नब्बे साल के बाद। क्या गुजरी होगी उस स्त्री पर! नब्बे साल बाद, मजबूरी में उसका पेट फाड़ा गया। तो दो बुजुर्ग निकले; बुजुर्ग तो हो ही चुके थे। थे छोटे-छोटे, मगर थे बुजुर्ग। बाल सफेद, दाढ़ी सफेद, बस एक पैर कब्र में ही था। और जो दृश्य था वह देखने योग्य था। पेट तो फाड़ दिया गया, तब सब राज खुला। 

            वे दोनों एक-दूसरे से कहें: 'पहले आप!' तब राज खुला कि क्यों नौ महीने में नहीं निकले। वह 'पहले आप! कि नहीं हुजूर पहले आप!' वह विनम्रता मार गई। पेट फटा पड़ा है, मगर वह लखनवी विनम्रता, वे कहें कि 'नहीं, पहले आप।' अरे, डाक्टर ने कहा, निकलो भी! जबरदस्ती निकालना पड़े, तब निकले वे। बामुश्किल निकले, बड़े बेमन से निकले, क्योंकि लखनवी रिवाज टूटा जा रहा है। मैं कोई विनम्र नहीं, इस बात में मैं राजी हूं। मैं कोई अहंकारी भी नहीं। क्योंकि विनम्रता और अहंकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मैं शांत नहीं, मैं अशांत नहीं। क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। और जब । सिक्का गिरता है तो पूरा गिरता है। अगर तुमने आधा बचाया तो दूसरा आधा हिस्सा ज्यादा से ज्यादा छिपेगा, जा नहीं सकता। इसलिए विनम्रता के पीछे अहंकार छिपा रहता है। शांति के पीछे अशांति छिपी रहती है।

    - ओशो 

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