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    मुल्ला नसरुद्दीन और बाबा पलटू दास - ओशो

    Mulla Nasruddin and Baba Paltu Das - Osho

    मुल्ला नसरुद्दीन और बाबा पलटू दास - ओशो 

    कल का प्रवचन सुन कर मुल्ला नसरुद्दीन ने तय कर लिया कि मुझे भी उस पार जाना है, नदी पार करनी है चाहे कुछ भी हो जाए। उसने अपने गुरु गोबरपुरी के परमहंस बाबा मुक्तानंद से पूछा, 'मैं किस घाट से यात्रा शुरू करूं? बाबा पलटू कहते हैं--बहुतेरे हैं घाट। लेकिन मुझे तो तैरना ही नहीं आता। सिर्फ एक बार एक उस्ताद के कहने से नदी पर गया था। घाट पर काई जमी थी, मेरा पैर फिसल गया। और उसके बाद मैंने कसम खा ली थी कि जब तक तैरना न सीख जाऊं, कभी नदी-किनारे न फटकूगा।' अब मुश्किल खड़ी हो गई कि जब तक नदी के किनारे ही न फटकोगे, तैरना कैसे सीखोगे? और तैरना जब तक नहीं सीखोगे, 'नदी के किनारे नहीं फटकूगा!' 'और पलटू कहते हैं कि बहुतेरे हैं घाट! और जाना है उस पार। 

            अब पलटू ने मेरी आंखें खोल दीं, मगर मैं बड़ी मुश्किल में हूं। मैं अपनी कसम तोड़ कर आज ही पार जाने को तत्पर हूं। अरे कोई एक ही घाट थोड़े ही है, कई घाट हैं। तो कोई तो ऐसा घाट भी होगा जहां काई न लगी हो। अतः हे मेरे परम गुरुदेव, तुम तो अच्छेखासे तैराक हो, नदी से भलीभांति परिचित हो, तुम तो उस घाट पहुंच ही चुके हो। तुम मुझे ऐसे घाट पर ले चलो जहां काई न जमी हो और पानी भी उथला हो।' बाबा ने कहा, 'बेटा, एक भी ऐसा घाट नहीं है जहां पानी गहरा न हो। किंतु एक घाट जरूर है जहां खतरा नहीं है, जरा भी जोखिम नहीं है।' मुल्ला नसरुद्दीन मुक्तानंद की बातों में आकर उस घाट पर पहुंच गया, जहां एक तख्ती लगी थी-- ' डूबते व्यक्ति को बचाने वाले को दो सौ रुपये सरकारी इनाम मिलेगा।' 

            मुक्तानंद ने कहा, 'देखो, तुम पानी में उतरो। यदि तुम डूबने लगे तो मैं तुम्हें बचाने कूद पडूंगा। इस प्रकार मुझे ढाई सौ रुपये पुरस्कार में मिल जाएंगे। और यदि खुदा न खास्ता तुम तैर ही गए तो उस पार लग जाओगे। इस तरह दोनों हाथ लड्डू ही लड्डू हैं।' बेचारा नसरुद्दीन अपने गुरु की इस दलील से प्रभावित होकर, यद्यपि डर तो रहा था, फिर भी पानी में उतर गया। चार कदम ही चल पाया था कि एक गड्ढे में डुबकी खा गया और जोर से चिल्लायाः 'सहायता करो! सहायता करो!' बाबा मन ही मन में मुस्कुराए, लेकिन किनारे पर ही मूर्तिवत खड़े रहे। फिर आवाज आई: 'मदद करो बाबा, मैं डूब रहा हूं! मदद करो!' मुक्तानंद ने कहा, 'अरे नसरुद्दीन, इसमें मदद की क्या जरूरत है? डूब जाओ। अब डूबने में तुम्हारी क्या मदद करूं? व्यर्थ शोरगुल न करो। अल्लाह का नाम लेकर डूब जा भाई। ऋषि-मुनि पहले ही कह गए हैं--जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। अब पैठ जा, मौका आ गया तो चूक मत। मत चूक चौहान!' 

            नसरुद्दीन की नाक में पानी भर रहा था। घबड़ाहट में जोर से चीखा: 'अरे बाबा, मुझे बचाओ! यह ज्ञान की बकवास अभी नहीं। यह कोई सत्संग का वक्त नहीं। मैं मर जाऊंगा। क्या तुम भूल गए कि मुझे बचाने के कारण तुम ढाई सौ रुपयों का सरकारी इनाम पाओगे?' मुक्तानंद ने कहा, 'बच्चू, मैं तुम्हें बचाने वाला नहीं। शांतिपूर्वक मर जाओ, इसी में फायदा है। अरे मरना सभी को है, एक न एक दिन मौत तो आती ही है। कल आई कि आज, देर-अबेर की बात है। अब मर ही जाओ, ऋषि-मुनि पहले ही कह गए हैं: जो इबा सो ऊबरा।' मुल्ला ने डूबते-डूबते आखिरी जिज्ञासा की: 'मगर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? क्या तुम्हें इनाम की परवाह नहीं? अरे मेरी छोड़ो, अपनी इनाम की तो सोचो।' मुक्तानंद ने जवाब दिया, 'परवाह क्यों नहीं! अरे इसी कारण तो तुम्हें बचा नहीं रहा। क्या तुमने इस तख्ती के पीछे लिखी दूसरी सूचना नहीं पढ़ी कि नदी में से लाश निकालने वाले को एक हजार रुपये का इनाम? '

    - ओशो 

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