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    40 वर्षों की पूजा या पागलपन - ओशो

    40 Years of Worship or Madness - Osho


    40 वर्षों की पूजा या पागलपन - ओशो 

     मेरे एक शिक्षक थे। अपने गांव जाता था, तो उनके घर जाता था। एक बार सात दिन गांव पर रुका था। दो या तीन दिन उनके घर गया। चौथे दिन उन्होंने अपने लड़के को एक चिट्ठी लिख कर भेजा कि अब कल से कृपा करके मेरे घर मत आना। तुम आते हो, तो मुझे खुशी होती है। मैं वर्ष भर प्रतीक्षा करता हूं कि कब तुम आओगे और इस वर्ष मैं जीऊंगा कि नहीं! तुम्हें मिल पाऊंगा कि नहीं! लेकिन नहीं, अब मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरे घर आज से मत आना। क्योंकि कल रात तुमसे बात हुई और जब मैं सुबह प्रार्थना करने बैठा अपने मंदिर में जहां मैं चालीस वर्षों से भगवान की पूजा करता हूं, तो मुझे एकदम ऐसा लगा कि मैं पागलपन तो नहीं कर रहा हूं! सामने एक मूर्ति रखी है, जिसको मैं ही खरीद लाया था, और उस मूर्ति के सामने मैं आरती कर रहा हूं। अगर कहीं यह सिर्फ पत्थर है, तो मैं पागल हूं और चालीस साल मैंने फिजूल गंवाए। नहीं, मैं डर गया। मुझे बहुत संदेह आ गया और चालीस साल की मेरी पूजा डगमगा गई। अब तुम यहां मत आना।

            मैंने उनको वापस उत्तर दिया कि एक बार तो मैं और आऊंगा, फिर मैं नहीं आऊंगा। क्योंकि एक बार मेरा आना बहुत जरूरी है। सिर्फ यह निवेदन करने मुझे आना है कि चालीस साल की पूजा और प्रार्थना के बाद अगर एक आदमी आ जाए और घंटे भर की उसकी बात चालीस साल की पूजा और प्रार्थना को डगमगा दे, तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि चालीस साल की पूजा और प्रार्थना झूठी थी, ऊपर खड़ी थी, भीतर संदेह मौजूद था। इस आदमी की बातचीत ने उस संदेह को फिर जगा दिया। वह हमेशा वहां भीतर सोया हुआ था। हम किसी के भीतर संदेह डाल नहीं सकते, अगर उसके भीतर मौजूद न हो। संदेह डालना असंभव है। संदेह डालना बिलकुल असंभव है, अगर उसके भीतर मौजूद न हो। संदेह भीतर मौजूद हो, बाहर से कोई बात कही जाए, भीतर से संदेह वापस उठ कर खड़ा हो जाएगा, क्योंकि वह प्रतीक्षा कर रहा है बाहर निकलने की, आप उसको दबा कर बिठाए हुए हैं।

    - ओशो 

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