भारत इसलिए धार्मिक नहीं हो सका क्योंकि हमने धर्म को विश्वास पर खड़ा किया - ओशो
भारत इसलिए धार्मिक नहीं हो सका क्योंकि हमने धर्म को विश्वास पर खड़ा किया - ओशो
सारी दुनिया के धर्म--भारत के धर्म और सारे धर्म--यह चेष्टा करते हैं कि कभी नास्तिक की बात मत सुनना, कभी अधार्मिक की बात मत सुनना, कान बंद कर लेना, कभी ऐसी बात मत सुनना। क्यों? डर किस बात का है? नास्तिक की बात इतनी मजबूत है कि आस्तिक के ज्ञान को मिटा देगी? अगर यह सच है, तो आस्तिक का ज्ञान दो कौड़ी का है। लेकिन सचाई यह है कि सच में जो आस्तिक है, जो जीवन को जानता है, परमात्मा को पहचानता है, जिसने आत्मा की जरा-सी भी झलक पा ली, उसे दुनिया भर की नास्तिकता भी डगमगा नहीं सकती। लेकिन हम आस्तिक हैं ही नहीं। भीतर हमारे नास्तिक बैठा हुआ है। ऊपर आस्तिकता पतले कागज की तरह घिरी हुई है। असली भीतर आस्तिक नहीं है। तो कोई जब बाहर नास्तिकता की बात करता है, भीतर वह जो सोया हुआ नास्तिक है उठने लगता है और कहता है, ठीक है यह बात।
भारत इसलिए धार्मिक नहीं हो सका कि हमने धर्म को विश्वास पर खड़ा किया, ज्ञान पर नहीं। धर्म खड़ा होना चाहिए ज्ञान पर, विश्वास पर नहीं। तो अगर ठीक धार्मिक मनुष्य चाहिए हो इस देश में, तो हमें जिज्ञासा जगानी चाहिए, इंक्वायरी जगानी चाहिए, विचार जगाना चाहिए, चिंतन-मनन जगाना चाहिए। विश्वास बिलकुल ही छोड़ देना चाहिए। बच्चों को विश्वास की कोई शिक्षा देने की जरूरत नहीं है। शिक्षा दी जानी चाहिए विचार करने की कला, चिंतन करने का ढंग, मनन करने का मार्ग, ध्यान करने की व्यवस्था, ताकि तुम । जान सको कि सत्य क्या है। और जिस दिन सत्य की थोड़ी-सी भी झलक मिलती है--एक किरण भी मिल जाए सत्य की--आदमी की जिंदगी दूसरी हो जाती है, वह जिंदगी धार्मिक हो जाती है। विश्वासी आदमी झूठा आदमी है, डिसेप्टिव है वह, आत्मवंचक है। इसलिए सारा मुल्क धोखे में पड़ गया है।
- ओशो
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