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    निजता के फूल - ओशो

     

    Flowers of Privacy - Osho

    निजता के फूल - ओशो 

    हसीद फकीर झुसिया मर रहा था। उसकी बूढी चाची हमेशा उसके खिलाफ थी, क्योंकि वह कुछ ऐसी बातें कर रहा था जो यहूदी धर्म के विपरीत जाती। वह जीवन के ऐसे ढंग लोगों से कह रहा था जो कि परंपरा के अनुकूल नहीं थे। वह बुढ़िया उसे बहुत बार कह गई थी कि देख, तू सम्हल, अब तू भी बूढा हो गया, अब मौत ज्यादा दूर नहीं है, अब तू मूसा का रास्ता पकड़, अब यह अपनी बकवास छोड़। मगर झुसिया हंसता। अब उस बूढी को क्या कहता! हंसता और टाल जाता। वह मर रहा था, तो उसकी चाची फिर गई, झकझोरा उसको और कहा, 'अब मरते वक्त तो कम से कम मूसा से प्रेम लगा ले। मरते वक्त तो कम से कम मूसा से अपना संबंध जोड़ ले।' 

            झुसिया ने कहा, 'देख, परमात्मा मुझसे यह नहीं पूछेगा कि तू मूसा क्यों नहीं हुआ। अरे मूसा बनाना होता उसे मुझे तो मूसा बनाता। वह मुझसे पूछेगा--झुसिया, तू झुसिया क्यों नहीं हुआ? मेरी फिकर वह है। मेरा मूसा से क्या लेना-देना? न मूसा झुसिया था, न झुसिया को मूसा होने की कोई जरूरत है। और मैं तैयार हूं परमात्मा के सामने नग्न खड़ा होने को, क्योंकि मैंने कुछ भी उधार नहीं होना चाहा। जो उसने मुझे बनाया था, जैसा उसने मुझे बनाया था, अगर गलत बनाया था तो गलत सही, मगर मैं वही रहा हूं जैसा उसने बनाया था। मैंने उसमें रत्ती भर हेर-फेर नहीं किया। हालांकि बहुत लोगों ने टांगें घसीटी और तू जिंदगी भर से रही है। लेकिन मैं पूरी तरह राजी हूं। मैं परमात्मा के सामने नग्न खड़ा हो सकता हूं, मुझे कोई भय नहीं है। क्योंकि मैं अपनी सहजता से जीया हूं। अपनी निजता के फूल को मैंने खिलाया है, यह मैं उसके चरणों में चढ़ा सकूँगा। मैं आनंद से मर रहा हूं, तू चिंता न कर।'

    - ओशो 

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