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    मैं तो चरित्र कहता हूं: अपनी भीतर की अनुभूति से जीना - ओशो

    I say character: to live with your inner feeling - Osho

    मैं तो चरित्र कहता हूं: अपनी भीतर की अनुभूति से जीना - ओशो 

     मैं तो चरित्र कहता हूं: अपनी भीतर की अनुभूति से जीना। मगर कोई भी समाज उसको चरित्र नहीं कह सकता। इसलिए तो मुझ पर आरोपण उनका स्वाभाविक है कि मैं लोगों को दुश्चरित्रता सिखा रहा हूं। मैं इनकार भी नहीं करता। अगर उनकी चरित्र की परिभाषा ठीक है तो मैं दुश्चरित्रता सिखा रहा हूं। मगर उनकी परिभाषा गलत है। वे जिसको चरित्र कहते हैं, वह धोखा है, पाखंड है। वे चरित्र के नाम पर लोगों को झूठी जिंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हैं। मैं झूठी जिंदगी से लोगों को मुक्त करना चाहता हूं। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि तुम्हारा सबसे बड़ा दायित्व अपने प्रति है। और अगर तुम अपने प्रति झूठे हो तो तुम सारी दुनिया के प्रति भी सच्चे हो जाओ, तो भी परमात्मा के समक्ष झूठे ही रहोगे। 

            वह तुमसे यह नहीं पूछेगा कि तुम कितने तगमे लाए हो--सोने के, चांदी के, कितने वीर-चक्र, कितने महावीर-चक्र! वह तुमसे नहीं पूछेगा कि कितने सर्टिफिकेट लाए हो। वह तुमसे पूछेगा, क्या तुम जीए अपने ढंग से, जैसा मैंने तुम्हें बनाया था? मैंने तुम्हें जुही की तरह बनाया था, तुम गुलाब की तरह जीने की कोशिश करके जुही भी न हो पाए और गुलाब भी न हो सके। तुम्हारी ऊर्जा लग गई गलाब होने में। और गुलाब तुम हो न सकते थे, वह मैंने तुम्हें कभी बनाया न था। वह तुम्हारा बीज न था। और तुम्हारी ऊर्जा लग गई गुलाब होने में। इसलिए तुम जो हो सकते थे, जुही हो सकते थे और रात सुगंध से भर सकती थी, लेकिन वह तुम न हो पाए, क्योंकि ऊर्जा ने गलत दिशा पकड़ ली। परमात्मा तुमसे पूछेगा कि तुम तुम हो या नहीं? और तुम कहोगे, मैं? मैं महावीर का अनुयायी हूं। मैं बुद्ध का अनुयायी हूं। मैं शंकराचार्य का अनुयायी हूं। ये बातें वहां न चलेंगी। परमात्मा पूछेगा, शंकराचार्य और बुद्ध और महावीर, उन्हें जो होना था हुए। तुम्हें किसने कहा था? अगर मुझे शंकराचार्य बनाने होते तो मैं फोर्ड की तरह फैक्टरी खोल देता। यहीं से शंकराचार्य बना-बना कर भेजता। फिर मैंने तुम्हें किसलिए बनाया? मैंने गलती की तुम सोचते हो? तुम मेरी गलती में सुधार करने बैठे हो?

    - ओशो 

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