राम के समय में भी दरिद्रता भयंकर थी, हाँ कोई बगावत नहीं थी - ओशो
राम के समय में भी दरिद्रता भयंकर थी, हाँ कोई बगावत नहीं थी - ओशो
तुम जी रहे हो सपनों में। अतीत भी सपना है, भविष्य भी सपना है। एक जा चुका, एक आया नहीं। और इन दो पाटों के बीच पिस रहे हो। लेकिन ये कहानियां तुम्हें यही कही जा रही हैं कि पहले था कृतयुग; वहां तुम जो करते वही हो जाता। उस समय यह कहावत सच न थी: मैन प्रपोजेज एंड गॉड डिस्पोजेज। आदमी प्रस्तावित करता है और ईश्वर इनकार कर देता है--यह उस समय बात नहीं होती थी। तुमने प्रस्ताव किया और परमात्मा ने स्वीकार किया, तत्क्षण; वह कृतयुग था। सभी लोग कल्पवृक्षों के नीचे बैठे थे, यूं समझो। जो चाहा, हुआ। सतयुग था, कोई झूठ नहीं बोलता था। लोग मकानों पर ताले नहीं लगाते थे। यह सब बकवास है। यह बिलकुल बकवास है। दीनता भयंकर थी। राम के समय में बाजारों में स्त्रियां और पुरुष बिक रहे थे, इससे ज्यादा दीनता और क्या होगी? दरिद्रता भयंकर थी।
हां, यह और बात है कि दरिद्र की दरिद्रता इतनी भयंकर थी कि वह बगावत भी करने का विचार नहीं कर सकता था। बगावत के लिए भी थोड़े सुख का स्वाद चाहिए। बगावत हमेशा मध्यवर्गीय लोगों से उठती है, दरिद्रों से नहीं उठती, दीनों से नहीं उठती, भिखमंगों से नहीं उठती। तुमने कोई क्रांतियां भिखमंगों से होते हए नहीं देखी होंगी कि भिखमंगों ने क्रांति कर दी। भिखमंगे ने तो स्वाद ही नहीं जाना सुख का, क्रांति कैसे करेगा? ये तो मध्यवर्गीय लोग, कार्ल माक्र्स और लेनिन और एंजिल्स और माओत्से तुंग और स्टैलिन, सब मध्यवर्गीय लोग हैं। बातें करते हैं गरीब की। गरीब को भड़काते हैं, क्योंकि उसी के बल पर खड़े हो सकते हैं। अमीर के खिलाफ खड़े होना है। अमीर को तो भड़का नहीं सकते। गरीब को भड़का सकते हैं। मगर ध्यान रखना कि जो भड़काने वाला है वह दोनों के बीच में है; न वह गरीब है, न वह अमीर है, वह मध्य में है, त्रिशंकु की भांति है। उसने थोड़ा सा सुख पाया है अमीरी का और बहुत दुख पाया है गरीबी का। अब उसको भरोसा है कि अगर थोड़ी चेष्टा करे तो अमीर हो सकता है। गरीब का सहारा लेना पड़ेगा। इसलिए क्रांतियां मध्यवर्गीय लोग करते हैं। गरीब का उपयोग करते हैं क्रांति में। कटता हमेशा गरीब है। चाहे अमीर काटे, चाहे मध्यवर्गीय काटे--कटेगा गरीब।
- ओशो
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