कोई कृतयुग कोई सतयुग कभी नहीं था - ओशो
कोई कृतयुग कोई सतयुग कभी नहीं था - ओशो
मेरे पिता के पिता सीधे-सादे ग्रामीण आदमी थे, मगर वे कुछ कहावतें बड़ी कीमती बोलते थे। कपड़े की उनकी छोटी सी दुकान थी और वे ग्राहक से पहले ही पूछ लेते थे, 'क्या इरादे हैं? दाम ठीक-ठीक बता दूं? मोलभाव नहीं होगा फिर। या कि मोल-भाव करना है? तो फिर उस हिसाब से चलूं। एक बात खयाल रखना कि तरबूज छुरे पर गिरे कि छुरा तरबूज पर गिरे, हर हालत में तरबूज कटेगा। इसलिए जो तुम्हारी मर्जी। कटोगे तुम ही।
और उनसे लोग राजी होते थे, यह कहावत ग्रामीणों को जंचती थी कि बात तो सच है, चाहे खरबूज को गिराओ छुरे पर और चाहे छुरे को गिराओ खरबूज पर, कोई छुरा कटने वाला नहीं है। सो वे उनसे राजी हो जाते थे कि आप, मोल-भाव करने में कोई सार नहीं, जो ठीक-ठीक भाव हो वह बता दें; कि जब कटना ही मुझे है तो जितना कम कहूं उतना ही बेहतर। तो छुरे पर ही छोड़ देना ठीक है। गरीब कटता रहा हमेशा। उस समय में इतना कटता था कि उसकी चीख भी नहीं निकलती थी।
बात झूठ है कि घरों में ताले नहीं लगते थे। नहीं तो बुद्ध और महावीर और ऋग्वेद के समय में हए जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, ये सब किसको समझा रहे हैं कि चोरी मत करो? अगर चोरी होती नहीं थी तो ये पागल हैं, ये तीर्थंकर और ये बुद्ध और ये सारे संत-महात्मा, सब विक्षिप्त हैं, इनका दिमाग खराब है। यह हो सकता है कि लोगों को ताला बनाना न आता हो, यह मेरी समझ में आ सकता है। ताला बनाने के लिए भी थोड़े विज्ञान का विकास चाहिए। या यह भी हो सकता है कि ताला लगाएं क्या, भीतर कुछ हो बचाने को तो ताला लगाएं! और ताले पर खर्चा क्या करना! ताला भी तो खरीदने के लिए कुछ हैसियत चाहिए। फिर ताला लगाने के लिए भी तो भीतर कुछ चाहिए, नहीं तो ताला वैसे ही लगा कर चोरों को निमंत्रण दो! वे ताला देख कर ही आएंगे। जिस घर में ताला ही नहीं लगा है उसमें कोई चोर आएगा? लेकिन चोरी निश्चित होती थी, क्योंकि वेदों तक में चोरी के खिलाफ वक्तव्य हैं।
दुनिया में जो सबसे पुराना शिलालेख मिला है, वह शिलालेख कहता है: चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, धोखाधड़ी मत करो, यह आदमियत का पतन है। वह सात हजार साल पुराना शिलालेख बेबीलोन में मिला है। उसमें जो वक्तव्य हैं वे । विचारणीय हैं। उसमें कहा गया है कि पत्नियां पतियों की नहीं मानतीं; बाप की बेटे नहीं मानते; कोई किसी की नहीं सुनता; शिष्य गुरुओं के साथ बगावत कर रहे हैं। ये किस बात की खबर देते हैं ये शिलालेख? ये इस बात की खबर देते हैं कि दुनिया आज से भी बदतर थी, आज से भी बुरी थी। युद्धों के समर्थन में सारे शास्त्र हैं। एक शास्त्र ने भी युद्ध का विरोध नहीं किया है। आज दुनिया में लाखों लोग हैं जो युद्ध के विरोध में हैं। सारे शास्त्र स्त्रियों की गुलामी के पक्ष में हैं। आज करोड़ों लोग हैं जो स्त्रियों की मुक्ति के आंदोलन में सहयोगी हैं। सभी शास्त्रों ने गुलाम को, दास को समझाया है कि यही तेरी नियति है, यही तेरा भाग्य है, विधाता ने तेरी खोपड़ी में लिख दिया है, अब इससे बचने का कोई उपाय नहीं, सहज भाव से गजार ले। लेकिन किसी ने क्रांति का उदघोष नहीं दिया है। क्या खाक कृतयुग था यह? क्या खाक सतयुग था यह?
- ओशो
कोई टिप्पणी नहीं