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    विधियों को पकड़ने से कोई नहीं पहुंचता; विधियों पर चलने से पहंचता है - ओशो

     

    No one reaches by catching methods; Reaches by following the methods - Osho


    विधियों को पकड़ने से कोई नहीं पहुंचता; विधियों पर चलने से पहंचता है - ओशो 

    यह अस्तित्व तो एक है। इसमें कोई मूसा की तरह, और कोई ईसा की तरह, और कोई कबीर की तरह, और कोई नानक की तरह--अलग-अलग रास्तों से, अलग-अलग ढंग और विधियों से सत्य तक पहुंच गया है। लेकिन विधियों को पकड़ने से कोई नहीं पहुंचता; विधियों पर चलने से पहंचता है। नावों को ढोने से कोई नहीं पहुंचता; नाव में सवारी करनी होती है, यात्रा करनी होती है। किनारों पर बैठ कर विवाद करने से कोई भी सार नहीं है। किनारे छोड़ो! छोड़ो नाव को, पतवारें उठाओ! वह जो दूर किनारा है, वह जो अभी दिखाई भी नहीं पड़ता है, अभी जिसको देखने की आंख भी नहीं है, जिसे पहचानने की क्षमता भी नहीं है--वह जो दूर किनारा है, वही मंजिल है। वह जो अभी अदृश्य है, वही मंजिल है। और मजा यह है कि वह कितने ही दूर हो, साथ ही वह तुम्हारे भीतर भी है। यूं समझो कि तुम अपने से बाहर हो, इसलिए जो पास से पास है वह दूर हो गया है। तुम बाहर ही बाहर भटक रहे हो। और तुम अपने से दूर ही दूर निकलते जा रहे हो। 

            आदमी भी कैसा पागल है! गौरीशंकर पर चढ़ेगा; पाने को वहां कुछ भी नहीं। जब एडमंड हिलेरी से पूछा गया कि क्यों, किसलिए तुमने यह भयंकर यात्रा की? यह खतरनाक यात्रा करने का मल कारण क्या है? क्योंकि एडमंड हिलेरी के गौरीशंकर पर पहंचने के पहले न मालूम कितने यात्री-दल चढ़े, खो गए; न मालूम कितने यात्री गिरे और उनकी लाशों का भी पता न चला। यह क्रम कोई सत्तर साल से चल रहा था। गौरीशंकर की यात्रा में अनेकों जानें गईं। और पाने को वहां कुछ भी नहीं था, यह तय है। जब एडमंड हिलेरी से पूछा गया तो उसने कंधे बिचकाए। उसने कहा, 'यह भी कोई सवाल है! गौरीशंकर है, यही काफी चुनौती है। अब तक अनचढ़ा है, यही काफी चुनौती है। अब तक दुर्गम रहा है, यही काफी चुनौती है। आदमी को चढ़ना ही होगा।' पाने का जैसे कोई सवाल नहीं!

    - ओशो 

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