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    क्या कोई तीर्थंकर तुम्हारे वोट से तय होगा ? - ओशो

    Will any Tirthankar be decided by your vote? - Osho

    क्या कोई तीर्थंकर तुम्हारे वोट से तय होगा ? - ओशो 

    जैन कहते हैं: 'तीर्थंकर चौबीस ही हो सकते हैं, वे हो गए।' अगर चौबीस ही हो सकते हैं, समझ लो, यह भी मान लो। एक जैन मुनि से मेरी बात हो रही थी। वे कहते थे, चौबीस ही हो सकते हैं। मैंने कहा, 'चलो यह भी मान लो। तो जो चौबीस हुए, यही वे चौबीस थे इसका कोई प्रमाण है? इनमें हो सकता है एक भी असली न हो और अभी चौबीस होने को हों। प्रमाण क्या है इनके चौबीस होने का? यह भी मान लो कि चौबीस ही हो सकते हैं, चलो कौन झगड़ा करे, चौबीस-पच्चीस कोई भी संख्या चलेगी। मगर ये ही चौबीस थे, महावीर ही चौबीसवें थे और ऋषभदेव ही पहले थे, यह क्या पक्का?'  ऋग्वेद में ऋषभदेव का नाम है, तो जैन घोषणा करते हैं कि हमारा धर्म ऋग्वेद से पुराना है। मगर हिंदू, दयानंद जैसे व्यक्ति यह मान नहीं सकते। वे ऋषभदेव को ऋषभदेव पढ़ते ही नहीं। वे पढ़ते हैं वृषभदेव! सांड! नंदीबाबा! वे ऋषभदेव को ऋषभदेव मानते ही नहीं, वे वृषभदेव मानते हैं। 

            अब वृषभदेव तुम्हारे पहले तीर्थंकर थे? यह जैन मानने को राजी न होंगे। और क्या सबूत कि जो प्रथम था वह कोई छाती पर लिखवा कर आया था? कोई सर्टिफिकेट, प्रमाण-पत्र लेकर आया था? मेरी आलोचना निरंतर अखबारों में की जाती है कि मैं स्व-घोषित भगवान हूं। मैं तुमसे पूछता हूं, तुम्हारा कौन सा भगवान था जो सर्टिफिकेट लेकर आया था? अगर मैं स्व-घोषित हूं, तो कौन था जो स्व-घोषित नहीं था? आखिर महावीर का दावा खुद का दावा था। 

            महावीर के समय में आठ और लोग थे जो दावेदार थे। यह और बात है कि वे आठों हार गए महावीर से तर्क में। मगर इससे यह सिद्ध नहीं होता कि जो तर्क में जीत गया था, जो वकालत में जीत गया था, वह असली था। और तर्क में ही जीतना हो तो मुझे कोई अड़चन है? अगर तर्क ही प्रमाणित हो सकता हो, तब तो मेरी जीत सुनिश्चित है। तर्क का तो बखिया मैं अच्छी तरह उखेड़ सकता हूं, इसमें मुझे कोई अड़चन नहीं है। तुम्हारे बड़े से बड़े तार्किकों की धज्जी उड़ाई जा सकती है, इसमें कुछ भी नहीं है। इनको चारों खाने चित्त करने में कोई अड़चन नहीं, क्योंकि इनके तर्क भी पिटे-पिटाए हैं और पुराने हैं। अब तर्क नये दिए जा सकते हैं, जिनका इनको पता भी नहीं था, जिनका इनको होश भी नहीं था, जिनका उठाने की इनकी हिम्मत भी नहीं हो सकती। 

            अब कौन कहेगा कि विष्णु महाराज कलियुग में जी रहे हैं? किसी ने आज तक नहीं कहा। मगर साफ है। शय्या पर--जब देखो तब शय्या पर लेटे हुए हैं। जिंदा भी हैं कि मर गए, यह भी शक है। और सांप फुफकार रहा है, मर ही चुके होंगे। कब तक जिंदा रहोगे सांप पर? और सोना, यह भी कोई ढंग है? अरे उठो भी, नहाओ-धोओ भी, कम से कम दतौन वगैरह करो, कुछ चाय-नाश्ता करो, कुछ भजन-पूजन करो, कुछ तो करो! यह मुर्दे की तरह पड़े हो; यह आसन न हुआ, शवासन हो गया। कौन लेकर आया था प्रमाण-पत्र? महावीर के समय में संजय वेलट्ठिपुत्त था, जो कह रहा था, 'मैं चौबीसवां तीर्थंकर हूं।' उसका कसूर अगर कोई था तो एक ही था कि वह आदमी जरा दीवाना था और मस्त था। महावीर जैसा नियमबद्ध नहीं था, इसलिए भीड़-भाड़ इकट्ठी न कर पाया। मस्तों का वह दुर्भाग्य है। उनकी मस्ती के कारण भीड़ उनके पास इकट्ठी नहीं हो सकती, कुछ मस्त इकट्ठे हो सकते हैं। संजय वेलठ्ठिपुत्त । जोरदार बातें कहता था। जैसे महावीर ने कहा कि सात नर्क होते हैं। उसने कहा, 'गलत! ये सात तक ही गए होंगे। अरे सात सौ नर्क हैं, मैं सब पूरी आखिरी छानबीन कर आया। और सात सौ ही स्वर्ग हैं। ये सातवें स्वर्ग तक गए होंगे, इसलिए बेचारे सातवें तक की बातें करते हैं। जो जहां तक गया वहां तक की बात करता है। मैंने ऊपर से नीचे तक सब छानबीन कर डाली है।' यह मस्ती में कही हुई बात है। यह मजाक कर रहा है वह कि क्या बकवास लगा रखी है सात की! और फिर सात की ही बात हो तो सात सौ की क्यों न हो! अरे फिर कंजूसी क्या?

            संजय वेलट्ठिपुत्त मस्ताना आदमी था। मक्खली गोशालक दावेदार था कि मैं असली चौबीसवां तीर्थंकर हूं! वह महावीर का पहले शिष्य था। फिर देखा उसने, जब महावीर हो सकते हैं चौबीसवें तीर्थंकर तो मैं क्यों नहीं हो सकता! सो अलग हो गया और उसने घोषणा कर दी। महावीर को स्वभावतः नाराजगी तो हई कि मेरा ही शिष्य, बारह साल मेरे साथ रहा और मेरी ही बातें करता है और मेरे ही खिलाफ दावेदारी करता है! 

            महावीर उस गांव गए जहां मक्खली गोशालक ठहरा हुआ था। उस धर्मशाला में ठहरे और मक्खली गोशालक से कहा कि मैं मिलना चाहता हूं। मक्खली गोशालक मिला। उन्होंने पूछा कि तू मेरा शिष्य था! उसने कहा, 'इससे ही सिद्ध होता है कि आप अज्ञानी।' महावीर ने कहा, 'इससे कैसे सिद्ध होता है कि मैं अज्ञानी? ' गोशालक ने कहा, 'आप पहचान ही नहीं पाए। यह देह वही है, मगर वह आत्मा तो गई। इसमें चौबीसवें तीर्थंकर की आत्मा प्रविष्ट हो गई, जो तुम्हारी शिष्य कभी नहीं रही। तुम अभी तक देह पर अटके हो। तुम्हें देह ही दिखाई पड़ रही है। अरे आत्मा को देखो! यह क्या अज्ञान!' महावीर कहते रहे, 'यह झूठ बोल रहा है।' और लोगों को भी बात जंची कि यह आदमी अजीब बातें कर रहा है, कि इसकी आत्मा त ॥ जा चुकी और चौबीसवें तीर्थंकर की आत्मा इसमें प्रविष्ट कर गई! मगर वह भी मस्त किस्म का आदमी था, उसके शिष्य भी मस्तमौला थे, इसलिए भीड़-भाड़ इकट्ठी नहीं हो सकी। 

            मगर बात तो उसने मजे की कही। वह भी मजाक में ही कही थी। ऐसे और भी लोग थे। अजित केशकंबली था। खुद गौतम बुद्ध थे। गौतम बुद्ध ने इनकार किया है कि महावीर तीर्थंकर हैं, सर्वज्ञ हैं। कैसे सर्वज्ञ? क्योंकि बुद्ध ने कहा, 'मैंने उन्हें ऐसे घरों के सामने भिक्षा मांगते देखी जिस घर में वर्षों से कोई नहीं रहता। ये क्या खाक सर्वज्ञ हैं! इनको यह भी पता नहीं कि यह घर खाली है, उसके सामने भिक्षा मांगने खड़े हैं! जब पड़ोस के लोग कहते हैं कि वहां कोई रहता ही नहीं, आप बेकार खड़े हैं, तब ये आगे हटते हैं। और ये तीन काल के ज्ञाता और इनको इतना भी ज्ञान नहीं कि यह घर खाली है! दरवाजे के पीछे देख नहीं पाते और तीन काल देख रहे हैं! त्रिलोक इनकी आंखों के सामने है! ये कैसे तीर्थंकर? सुबह उठ कर चलते हैं रास्ते पर अंधेरे में, कुत्ते की पूंछ पर पैर पड़ जाता है। जब कुत्ता भौंकता है तब पता चलता है कि पूंछ पर पैर पड़ गया।' ये बुद्ध ने महावीर के संबंध में बातें कही हैं। तो कौन तीर्थंकर है? किसके पास दावा है? किसके पास सर्टिफिकेट है? या कि तम सोचते हो कि कोई तीर्थंकर, कोई अवतार वोट से तय होता है? तो किसको वोट मिली थी? और वोट अगर मिलती तो ये सब हार गए होते। बुद्ध को कितनी वोट मिलती? जीसस को कितनी वोट मिलती? मोहम्मद को कितनी वोट मिलती?

    - ओशो 

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