आदमी की तरकीबें अहंकार की बहुत अदभुत हैं - ओशो
आदमी की तरकीबें अहंकार की बहुत अदभुत हैं - ओशो
गांधी जी गोलमेज कांफ्रेंस में इंग्लैंड गए थे। गांधी जी के एक सेक्रेटरी बर्नार्ड शॉ से मिलने गए। बर्नार्ड शॉ से उन्होंने पूछा...। शिष्य हमेशा ही ऐसा पूछते हैं। शिष्य हमेशा पूछते हैं कि हमारे महात्मा के बाबत क्या खयाल है? महात्मा की फिक्र नहीं होती, फिक्र इस बात की होती है कि अगर हमारा महात्मा बड़ा है तो हम बड़े महात्मा के बड़े शिष्य हैं! जो मजा...मजा बहुत दूसरा होता है। - सेक्रेटरी ने बर्नार्ड शॉ से पूछा कि महात्मा गांधी के बाबत आपका क्या खयाल है, आप उनको महात्मा मानते हैं? वह बर्नार्ड शॉ तो बहुत अदभुत आदमी था। उसने कहा, महात्मा? महात्मा मानता हूं, लेकिन नंबर दो; नंबर एक का तो मैं ही हूं। सेक्रेटरी बहत हैरान हए होंगे कि कैसा आदमी है यह! यह कहता है कि नंबर एक का मैं हं और नंबर दो के गांधी हैं! और दो ही महात्मा हैं दुनिया में, ज्यादा भी नहीं हैं, लेकिन वे नंबर दो, नंबर एक मैं हूं।
बहुत दुखी लौटे और गांधी को आकर कहा कि बर्नार्ड शॉ तो बहुत अजीब सा आदमी मालूम पड़ता है, बहुत अहंकारी मालूम पड़ता है। मैंने पूछा तो उसने यह कहा कि मैं नंबर एक हूं, आप नंबर दो। गांधी ने कहा कि वह ठीक कहता है, वह सच्चा आदमी है, सबके मन में खयाल तो यही रहता है कि नंबर एक हम हैं। लेकिन कहने की हिम्मत लोग कम जुटा पाते हैं। उसने ठीक बात कह दी।
और इस आदमी को चोट क्यों लगी गांधी के नंबर दो होने से? चोट लगी इसलिए कि नंबर दो महात्मा के शिष्य हो गए। जब आदमी के पास कुछ नहीं रह जाता तो झूठे सब्स्टीटयूट खोजता है ऊंचे होने की। हम चिल्लाते हैं कि हमारा महावीर, हमारा बुद्ध बहुत महान हैं। क्यों? क्योंकि हमारा है। और हमारा है तो हम भी उसके साथ महान होने का मजा ले लेते हैं। आदमी की तरकीबें अहंकार की बहुत अदभुत हैं।
- ओशो
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