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    नींद से भरे हुए लोग ही स्वर्ण को पकड़े बैठे हैं - ओशो

     

    Only sleepy people are holding gold - Osho

     नींद से भरे हुए लोग ही स्वर्ण को पकड़े बैठे हैं - ओशो 

    अहंकार अजीब तरह की चुनौतियां स्वीकार कर लेता है: गौरीशंकर पर चढ़ना है, चांद पर जाना है। अब मंगलग्रह पर जाने की बात चल रही है। और यह बात कुछ रुकेगी नहीं। यह बात आगे बढ़ेगी। अभी ग्रहों पर, फिर तारों पर पहुंचना होगा। और फिर अनंत विस्तार है तारों का। यूं आदमी अपने से दूर निकलता जाता है। किनारा दूसरा कहीं बाहर नहीं है। ये बहुतेरे जो घाट हैं, ये इसलिए बहुत हैं कि तुम अलग-अलग बाहर की यात्राओं पर निकल गए हो। तुम अपने से ही बहुत दूर चले गए हो। तुम्हें अपनी ही खबर नहीं रही--कहां छोड़ केस जंगल में अपने को भूल आए हो, कहां तुम खो गए हो--इसका तुम्हें होश नहीं। तुम्हारी नजरें किसी और चीज पर लगी हैं। किसी की धन पर, किसी की पद पर, किसी की परमात्मा पर, किसी की स्वर्ग पर, किसी की मोक्ष पर। लेकिन नजर बाहर अटकी है। वहां पहुंचना है। और मामला कुछ और है: वहां तुम हो; यहां पहुंचना है। दूर तुम जा चुके हो, पास आना है। क्रमशः, आहिस्ता-आहिस्ता, उस बिंदु पर लौट आना है जो हमारा केंद्र है। उस पर आते ही सारे राज खुल जाते हैं; सारे रहस्य जो आच्छादित हैं, अनाच्छादित हो जाते हैं; जो ढके हैं, उघड़ जाते हैं।

            प्रार्थना की है: 'हे परमात्मा! सोने से ढके हए इस पात्र को तू उघाड़ दे!' प्रार्थना प्यारी है। 'सोने से ढके हुए इस पात्र को तू उघाड़ दे!' यह सोने से ढका है। चूंकि सोने से ढका है, इसलिए हम ढक्कन को ही पकड़ लेते हैं। ऐसे प्यारे ढक्कन को कौन छोड़े! जोर से पकड़ लेते हैं कि कोई और न पकड़ ले। मगर रहस्य इसी सोने में ढका है। और जब तक कोई इस सोने को न छोड़े...| यह 'सोना' शब्द भी बड़ा प्यारा है। एक अर्थ तो 'स्वर्ण' और एक अर्थ  'नींद '। ये नींद से भरे हुए लोग ही स्वर्ण को पकड़े बैठे हैं। यही ढकना है--यह नींद, यह बेहोशी, यह मूर्छा।

            जाग जाओ! अब जागोगे कैसे? बहुतेरे घाट हो सकते हैं। महावीर एक तरह से जागे, बुद्ध दूसरी तरह से जागे। और स्वभावतः, जब कोई व्यक्ति जागता है, तो जिस विधि से जागता है उसी की बात करता है। और किसी की बात करे भी तो कैसे करे? जो मार्ग परिचित है उसकी ही बात करेगा। जिस रास्ते से चल कर वह आया है, उसी रास्ते से उसकी पहचान है। जिस नाव पर बैठ कर उसने यात्रा की है, उसी नाव से तुम्हें परिचित करा सकता है। लेकिन इससे तुम यह मत समझ लेना कि बस एक ही नाव है। वही समझ लिया गया है।

    - ओशो 

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