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    मुझसे राजी होना चरैवेति-चरैवेति से राजी होना है - ओशो


    मुझसे राजी होना चरैवेति-चरैवेति से राजी होना है - ओशो 

     पिकासो एक चित्र बना रहा था और उसके एक मित्र ने कहा कि मैं एक बात पूछना चाहता हूं। तुमने हजारों चित्र बनाए, सबसे सुंदर चित्र कौन सा है? पिकासो ने कहा, यही जो अभी मैं बना रहा हूं। और यह तभी तक जब तक बन नहीं गया है; बन गया कि मेरा इससे नाता टूट गया। फिर मैं दूसरा बनाऊंगा। और निश्चित ही दूसरा मेरा श्रेष्ठतम होगा, क्योंकि इसको बनाने में मैंने कुछ और सीखा; इसको बनाने में मेरे हाथ और सधे; इसको बनाने में मेरे रंगों में और निखार आया; इसको बनाने में और सूझ-बूझ जगी। अब तुम मुझसे पूछते हो मैंने गीता पर यह कहा था पंद्रह साल पहले, कि महावीर पर बीस साल पहले यह कहा था। तब से मेरे हाथ बहुत सधे। तब से मेरी तूलिका बहुत निखरी। तब से मेरे रंगों में नये उभार आए। उस बकवास को जाने दो। वह बात ऐतिहासिक हो गई। मैं तो आज जो कह रहा हूं, बस उससे जो राजी है वह मेरे साथ है। और उसे यह स्मरण रखना है कि मुझसे राजी होना चरैवेति-चरैवेति से राजी होना है। कल मैं आगे चल पडूंगा, तब तुम यह न कह सकोगे कि कल ही तो हमने यह तंबू गाड़ा था और अब उखाड़ना है! और हम तो इस भरोसे में गाड़े थे कि आ गए! मैं तुम्हारे सब भरोसे तोड़ दूंगा। 

            मैं तो तुम्हें खानाबदोश बनाना चाहता हूं। 'खानाबदोश' शब्द बडा प्यारा है। खाना का अर्थ होता है घर; जैसे मयखाना। खाना का अर्थ होता है घर; दवाखाना। बदोश का अर्थ होता है कंधे पर। 'दोश' यानी कंधा, बदोश यानी कंधे पर। खानाबदोश बड़ा प्यारा शब्द है। इसका मतलब--जिसका घर कंधे पर; जो चल पड़ा है, चलता ही रहता है, चलता ही जाता है, जो रुकता ही नहीं सत्य की इस अनंत यात्रा में। और इसका सौंदर्य यही है कि यह यात्रा अनंत है, कहीं समाप्त नहीं होती, इसका पूर्ण-विराम नहीं आता। जिस दिन पूर्ण-विराम आ जाएगा उस दिन फिर करोगे क्या? फिर जीवन व्यर्थ हुआ। फिर आत्महत्या के सिवाय कुछ भी न सूझेगा। इसलिए जिन्होंने तुम्हें धारणा दी है कि मोक्ष आ गया कि सब आ गया, कि मुक्ति आ गई कि सब आ गया, कि समाधि आ गई कि सब आ गया, उन्होंने तुम्हें गलत धारणा दी है। उन सबने तुम्हें कहीं ठहर जाने का मुकाम बता दिया है।

    - ओशो 

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