कलियुग जारी है, सदियों से जारी है - ओशो
कलियुग जारी है, सदियों से जारी है - ओशो
दो शिष्य एक गुरु के पैर दबा रहे थे। दोपहर का वक्त, गरमी के दिन। गुरु रहे होंगे कोई गुरुघंटाल। असली गुरु पैर नहीं दबवाता। असली गुरु क्यों पैर दबवाएगा? और लंगड़ों से क्या पैर दबवाना? अंधों से क्या पैर दबवाना? सोए हुओं से क्या पैर दबवाना? ये तो कुछ उपद्रव करेंगे ही। तो गुरु तो नहीं रहे होंगे, गुरुघंटाल रहे होंगे। दोनों पैर दबा रहे थे। दो ही शिष्य थे उनके। सो हर चीज में बंटवारा करना पड़ता था। एक ने बायां पैर लिया था, एक ने दायां। गुरु ने करवट बदली। बायां पैर दाएं पैर पर चढ़ गया। जिसका दायां पैर था उसने कहा, 'हटा ले अपने बाएं पैर को! अगर मेरे पैर पर तेरा पैर चढ़ा तो भला नहीं।' लेकिन जिसका पैर चढ़ गया था उसने कहा, 'अरे देख लिए ऐसे धमकी देने वाले! किसकी हिम्मत है जो मेरे पैर को नीचे उतार दे? जब चढ़ ही गया तो चढ़ ही गया। चढ़ेगा! कर ले जो तुझे करना हो!' उसने कहा, 'देख, हटा ले! मान जा!' वह उठा लाया लट्ठ। उसने कहा, 'वह दुचली बनाऊंगा तेरे पैर की...।' मगर दूसरा भी कुछ पीछे तो छूट जाने वाला नहीं था। सोए हुए आदमियों के साथ यही तो खतरा है। दूसरा तलवार उठा लाया। उसने कहा, 'हाथ लगा, लकड़ी चला मेरे पैर पर, और देख तेरे पैर की क्या गति होती है! एक ही झटके में फैसला कर दूंगा।' इस आवाज में, शोरगुल में गुरु की नींद खुल गई। सुना आंखें बंद किए-किए कि यह मामला बिगड़ा जा रहा है। उसने कहा, 'भाइयो, जरा ठहरो! यह भी तो खयाल करो कि पैर मेरे हैं।' उन्होंने कहा, 'आप शांत रहिए! आपको बीच-बीच में बोलने की कोई जरूरत नहीं। जब बंटवारा हो चुका तो हो चुका। यह इज्जत का सवाल है। आप शांत रहो।'
यही हाल विष्णु का होगा: इधर सांप फनफना रहा, उधर लक्ष्मी मैया पैर दबाते-दबाते जमाने हो गए, गर्दन तक तो पहुंच ही गई होंगी। वह गर्दन दबा रही होंगी। विष्णु उठ भी नहीं सकते, वे कलि-काल में ही हैं। और वही तुम्हारे अवतार बनते हैं। वही कभी राम बन जाते, कभी परशुराम बन जाते। वही कभी कृष्ण बन जाते। उनका धंधा एक ही है। यूं समझो कि असलियत में तो वे वहीं रहते हैं अपनी शय्या पर, पता नहीं कौन उनकी जगह नाटक कर जाता है! यह सब नाटक-चेटक चल रहा है। यह एक ही आदमी भारत की छाती पर चढ़ा हआ है, और वह शय्या पर सो रहा है। कलियुग जारी है, सदियों से जारी है।
- ओशो
कोई टिप्पणी नहीं