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    जिसने भगवत्ता जानी वही घोषणा करेगा - ओशो

     

    Whoever knows God will declare it - Osho

    जिसने भगवत्ता जानी वही घोषणा करेगा - ओशो 

    जो लोग मुझसे पूछते हैं स्व-घोषित भगवान आप कैसे, उनसे मैं कहना चाहता हूं: जिसने भगवत्ता जानी वही घोषणा करेगा। बुद्ध ने स्वयं घोषणा की कि मैं परम निर्वाण को उपलब्ध हुआ हूं। किसका और सर्टिफिकेट है? मोहम्मद ने खुद घोषणा की कि मेरे ऊपर परमात्मा की किताब उतरी है। किसका और सर्टिफिकेट है? कोई गवाह है? हालत तो यह है कि खुद मोहम्मद को भी शक हुआ था कि यह किताब परमात्मा की मुझ पर उतर रही है या मैं पागल हो रहा हूं! और जब किताब उतरी तो वे घर भागे हुए आए और उन्हें बुखार चढ़ गया। यह मोहम्मद की सादगी, सरलता का सबूत है। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि जितनी भी दुलाइयां हों घर में, सब मेरे ऊपर डाल दे। मुझे कुछ हो गया है। या तो मैं सन्निपात में हूं, क्योंकि मुझसे ऐसी बातें निकल रही हैं जो मेरी नहीं हैं, मैंने कभी सोची नहीं हैं। ऐसी सुंदर आयतें मेरे भीतर गूंज रही हैं, ऐसे सुंदर गीत, जो निश्चित ही मेरे नहीं हैं, जिन पर मेरा कोई हस्ताक्षर नहीं है। तो या तो मैं सन्निपात में हूं कि मुझे कुछ का कुछ हो रहा है, अल्ल-बल्ल, जो मेरे वश के बाहर है; और या फिर मैं कवि हो गया हूं, जो कि और भी बदतर है। क्योंकि सन्निपात से तो आदमी का इलाज है, कवि हो गए तो फिर कोई इलाज ही नहीं। जहां न पहंचे शशि, वहां पहुंचे कवि! इनका तो कुछ हिसाब ही नहीं है। 

            लेकिन आयशा, उनकी पत्नी ने कहा कि मुझे कुछ कहो, क्या हो रहा है तुम्हारे भीतर? मोहम्मद ने अपने पहली आयतें सुनाईं। आयशा ने कहा, 'तुम भूल में हो।' आयशा उनसे उम्र में बहत बड़ी थी। इसलिए कभी-कभी अपनी उम्र से ज्यादा उम्र की स्त्री से शादी करना फायदे की बात है। काफी बड़ी थी। मोहम्मद छब्बीस साल के थे, आयशा चालीस साल की थी। अनुभवी थी। मां की उम्र की थी। उसने आयतें सुनीं। उसने कहा, 'इससे सुंदर सूत्र तो मैंने कभी सुने नहीं! न तो तुम सन्निपात में हो, न तुम कवि हो। तुम पर परमात्मा के वचन उतरे हैं। ये वचन इतने प्यारे हैं कि परमात्मा के ही हो सकते उसने भरोसा दिलाया, तब कहीं मोहम्मद को भरोसा आया। आयशा उनकी पहली शिष्या थी--पहली मुसलमान। उसने ही सहारा दिया तो मोहम्मद हिम्मत जुटा पाए औरों से कहने की। मगर बहुत सम्हल-सम्हल कर कदम चले। लेकिन प्रमाण क्या था? भीड़-भाड़ ने तो मोहम्मद को माना नहीं। जगह-जगह से उखाड़े गए। एक-एक गांव से भगाए गए। जिंदगी भर लोग उनके मारने के पीछे पड़े रहे। इनसे तुम वोट ले सकते थे? मेरे जैसे व्यक्ति को तो अपनी घोषणा स्वयं ही करनी होगी। और मेरे जैसे व्यक्ति को पचाना केवल थोड़े से छाती वाले लोगों की बात हो सकती है।

    - ओशो 

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