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    अनुकरण नहीं--स्वयं होना जरूरी - ओशो

     

    Don't imitate--must be oneself - Osho

    अनुकरण नहीं--स्वयं होना जरूरी - ओशो 

    अनुकरण नहीं--स्वयं होना जरूरी है। निजता की उदघोषणा जरूरी है। अब तक यही सिखाया गया है सदियों से कि पकड़ लो कोई घाट, कि पकड़ लो कोई नाव, कि पकड़ लो कोई शास्त्र, कि बंधा हुआ कोई सिद्धांत, कि रटे-रटाए सदियों के सड़े-गले उत्तर दोहराए जाओ। जिंदगी सदा नये सवाल उठाती है और तुम्हारे जवाब हमेशा पुराने होते हैं। इसलिए जिंदगी और तुम्हारा तालमेल नहीं हो पाता, संगीत नहीं बन पाता। जिंदगी कुछ पूछती है, तुम कुछ जवाब देते हो। जिंदगी पूरब की पूछती है, तुम पश्चिम का जवाब देते हो। जिंदगी कभी वही दुबारा नहीं पूछती। और तुम्हारे जवाब वही हैं । जो तुम्हारे बाप-दादों ने दिए थे, उनके बाप-दादों ने दिए थे। 

            मजा यह है कि जितना पुराना जवाब हो, लोग समझते हैं उतना ही ज्यादा ठीक होगा। जितना पुराना हो उतना ही ज्यादा गलत होगा! जवाब नया चाहिए, नितनूतन चाहिए! जवाब तुम्हारी स्व-स्फुरणा से पैदा होना चाहिए। जवाब तुम्हारे बोध से आना चाहिए। लेकिन सदियों से तुम्हें बुडूपन सिखाया जा रहा है, मूढता पिलाई जा रही है, अंधविश्वास तुम्हारी खोपड़ी में भरे जा रहे हैं। और तब यह दुर्गति मनुष्यता की हो गई है। इस दुर्गति में तुम्हारे तथाकथित महात्माओं का हाथ है। इस दुर्गति में तुम्हारे धर्मगुरुओं का हाथ है। इस दुर्गति में उन सारे लोगों का हाथ है, जिनकी चाहे नीयत अच्छी हो, इरादे नेक हों, मगर जिनकी समझ कुछ भी नहीं। अंधे आदमी की नीयत कितनी ही अच्छी हो, और वह तुम्हारा हाथ पकड़ कर रास्ता दिखाने लगे, तो नानक ने कहा है: । अंधा अंधा ठेलिया, दोनों कूप पड़त।' नीयत बड़ी अच्छी थी। मार्ग-द्रष्टा बन रहा था। इरादे बुरे न थे। इरादों पर कोई शक नहीं है मुझे। लेकिन आंख ही न हो बेचारे के पास तो इरादे क्या करेंगे?

    - ओशो 

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